कविता

आनंद का दरिया

जब तक भीतर का बच्चा खिलखिलाकर मुस्कुराता है,
आनंद का दरिया खुद-ब-खुद बहता ही चला जाता है.
इसलिए उम्र बढ़ने की दुहाई देना एक बहाना है,
साहस बना रहे, तो उम्र नहीं आड़े आती है सबने जाना है.
हम आनंद रूप हैं, गुरुओं ने सिखलाया है,
आनंद हमारे अंदर है, कैसे उसे पाएं, पथ दिखलाया है,
दुआ करें मेरे भीतर का बच्चा खिलखिलाकर मुस्कुराता रहे,
आनंद का दरिया खुद-ब-खुद बहता-लहराता रहे.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244