गीत/नवगीत

भ्रष्टाचार

हर बंदा शिकार है इसका ‘ त्रस्त ये दुनिया सारी है
भ्रष्टाचार नहीं मिटने का ‘ यह तो बड़ी बीमारी है

भ्रष्टाचार मिटाने का ‘ नेताजी भाषण देते हैं
फेंक के टुकडे कागज का ‘ वह जनता का मत लेते हैं

करके खर्च करोड़ों में ‘ अरबों पाने की बारी है
भ्रष्टाचार नहीं मिटने का ‘ यह तो बड़ी बीमारी है

राशन कार्ड बनाना हो या ‘ फिर चालक बन जाना है
कोई भी हो काम हमें तो ‘ पूजा पड़ा चढ़ाना है

बिन पूजा कोई काम बने ना ‘ जाने दुनिया सारी है
भ्रष्टाचार नहीं मिटने का ‘ यह तो बड़ी बीमारी है

नियमों की परवाह करो ना ‘ डरने की कोई बात नहीं
ऐसा कोई श्वान नहीं है ‘ जो हड्डी को खात नहीं

दाल गलेगी नहीं किसीकी ‘ जो जेब तुम्हारी भारी है
भ्रष्टाचार नहीं मिटने का ‘ यह तो बड़ी बीमारी है

भ्रष्टाचारी रावण हैं ‘ इनको कैसे हम मारेंगे
पत्थर से टकराकर सर को ‘ खुद ही खुद से हारेंगे

मारना है रावण को तो फिर ‘ राम हमें बनना होगा
रिश्वत ना दो ना लो सबसे ‘ बात यही कहना होगा

सर ना उठाये फिर से रावण ‘ करनी अब तैयारी है

नहीं तो

भ्रष्टाचार नहीं मिटने का ‘ यह तो बड़ी बीमारी है

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।