गीत/नवगीत

सच्चाई की डगर

माना मुश्किल है डगर मगर
जीवन संघर्ष है कहते हैं
पथ में पग में छाले फूटें
पर सत्य मार्ग पर चलते हैं

कुछ मुश्किल आन ही पड़ती है
कुछ रिश्ते टूट भी जाते हैं
कुछ मतलब के संगी साथी
यह राह चले छुट जाते हैं

परवाह नहीं इनका हमको
अपना कर्तव्य निभाना है
इस राह चले मीलती मंजिल
दुनिया को यह दिखलाना है

एक सच से बचने की खातिर
सौ झूठ बोलना पड़ता है
जब झूठ दगा दे जाता है
मुख़ कालिख पोतना पड़ता है

नहीं छिपता झूठ के परदों से
सच बाहर आकर रहता है
‘ लाख छिपाओ छिप न सकुंगा ‘
सीना तान कर कहता है

क्षण भर को तुम खुश हो लोगे
गर झूठ का दामन थामोगे
जब पोल खुले पछताओगे
अनचाही विपदा पालोगे

मैं इसीलिए यह कहता हुं
प्रण कर लो झूठ न बोलोगे
चाहे सत्पथ में शूल बिछें
बस इसी राह पर ड़ोलोगे

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।