कविता : पापा
मेरे नन्हें से हाथों ने बड़ी जोर से थामा था लगता था मेरी मुट्ठी में तब सारा जमाना था बाजार
Read Moreमेरे नन्हें से हाथों ने बड़ी जोर से थामा था लगता था मेरी मुट्ठी में तब सारा जमाना था बाजार
Read Moreआज मैं हूँ उलझन में अपनों से अनबन में जो कभी सोचा नहीं वो घट रहा है जीवन में झूठ
Read Moreहमने उसे जब छुआ था, कुछ एहसास हुआ था, साँसे थी वो उसकी, या सिगार का धुआँ था! हमने उसे
Read Moreयू ही खिड़की पे बैठे बैठे, सुबह से शाम कर दी, जैसे अपनी ज़िंदगी उस,, आसमां के नाम कर दी,
Read Moreजूता सिसकी भरि रहा, ये मेरा अपमान सोच-समझ कर तानिए, फिर करिए संधान फिर करिए संधान, ‘केजरी’ मुवां निठल्ला संविधान
Read Moreविगत चार माह से भी अधिक समय से समाजवादी दल में चाचा और भतीजे के बीच चल रही जंग अब
Read Moreतुम्हारे आने की उम्मीद है, जो हम जी रहे हैं हर पल ज़हर सा लगता है, जो हम पी रहे
Read Moreकुछ करने की सोचो यार खुद से करके देखो प्यार तुम्ही खुद को तड़पाते तुम्ही खुद के हो हैवान समझकर
Read Moreयह भारत की धरती है, यह सिंह सवारी करती है एक हाथ रख तिरंगा, यह खड्ग भी धारण करती है
Read Moreकोई बात होठों में दबाकर देख लो यारो माँ सब समझती है छुपाकर देख लो यारो। किसने कह दिया तुमसे
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