कविता

क्यों है

है शौक हमें भी खेलने का मगर  

जिन्दगी से गायब शरारतें क्यों है।

है लबों पर चाहतें कई मेरे मगर

तेरे लबों पे भरी शिकायतें क्यों है।

कहनी थी कई बातें तुझे ऐ हमनशीं

मगर तेरी आखों में मेरे लिये ये हिकारतें क्यों है।

है इल्म मुझे तेरी चुप्पी का मगर

मेरे लिये तेरी ये नजरें इनायते क्यों है।

गुजर जायेगी ये जिन्दगी युँ ही रूसवाईयों में

मगर तेरे दिल मे दर्द भरी  ये  रवायतें क्यों है ।

कहने को कह दूं सारी बातें जमाने से

मगर मेरे लब्जों मे पसरी तेरी खामोशियां क्यों है।

है अभी भी इन्कार तुझे मेरी दिल्लगी का

मगर मेरे इश्क मे बरकरार ये गर्माहटें क्यों है।          

अल्पना हर्ष

अल्पना हर्ष

जन्मतिथी 24/6/1976 शिक्षा - एम फिल इतिहास ,एम .ए इतिहास ,समाजशास्त्र , बी. एड पिता श्री अशोक व्यास माता हेमलता व्यास पति डा. मनोज हर्ष प्रकाशित कृतियाँ - दीपशिखा, शब्द गंगा, अनकहे जज्बात (साझा काव्यसंंग्रह ) समाचारपत्रों मे लघुकथायें व कविताएँ प्रकाशित (लोकजंग, जनसेवा मेल, शिखर विजय, दैनिक सीमा किरण, नवप्रदेश , हमारा मैट्रौ इत्यादि में ) मोबाईल न. 9982109138 e.mail id - alpanaharsh0@gmail.com बीकानेर, राजस्थान