सामाजिक

पानी बचाने के कुछ उपाय

होली आ गई है। पानी बचाने एवं होली न खेलने की अपील करने वाले संदेशों की बाढ़ भी आ गई है हमेशा की तरह। पानी की कमी के तमाम उदाहरण दिए जा रहे हैं। बौद्धिक एवं भावनात्मक दोनों ही तरीकों से होली न खेलने की सार्थकता सिद्ध करने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है। निस्संदेह संदेश भेजने वालों का आशय शुभ ही है परंतु भइया हम तो होली खेलेंगे और अवश्य खेलेंगे। रंग भी उड़ाएंगे और पानी भी बहाएंगे। तथाकथित बुद्धिजीवियों को पसीना आता है तो आता रहे, महान पर्यावरणविद लाल-पीले होते हैं तो होते रहें हम तो त्योहार मनाएंगे ही। पानी बचाने के तो सैंकड़ों तरीके हैं लेकिन त्योहार मनाने का तरीका एक ही है। यदि कुछ बदलना ही है तो हमें अपनी आदतें बदलनी चाहिए। हमारी कुछ दैनिक आदतों में छोटे-छोटे बदलाव पानी की कमी को काफी हद तक दूर करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं

पानी बचाने के कुछ उपाय

ब्रश करते हुए, दाढ़ी करते हुए या कुल्ला करते हुए नल को यथाशीघ्र बंद करके हम काफी पानी बचा सकते हैं। केवल ब्रश करते हुए नल खुला रखने से 9 लीटर पानी प्रति मिनट बर्बाद होता है।

नहाने में शावर की बजाए बाल्टी के प्रयोग से भी पानी की काफी बचत हो सकती है।

यदि आपके नल में से पानी टपकता है तो प्रति सप्ताह 90 लीटर तक पानी बर्बाद हो सकता है। यदि आपके घर या किसी सार्वजनिक स्थल पर ऐसा होते हुए देखें तो तुरंत इसे ठीक करने की दिशा में कदम उठाएं।

अपनी गाड़ियां हर रोज़ धुलवाने की बजाए हफ्ते में एक ही बार धुलवाने जैसे छोटे से काम से भी हज़ारों-लाखों लीटर पानी प्रतिदिन बच सकता है।

हमारे घरों में अक्सर सब्जियों और फलों को खुले पानी में धोया जाता है, अगर इसकी जगह किसी बड़े भगौने या बर्तन में पानी भर कर सब्जियों को धोया जाए तो पानी भी कम लगेगा और वो ठीक से साफ़ भी हो पाएंगी।

जब आप 1 गिलास RO वाटर पीते हैं तो ध्यान रखिये कि इसे फ़िल्टर करने के प्रोसेस में 3 गिलास पानी व्यर्थ होता है। इसलिए जब भी आप गिलास में RO वाटर लें तो पूरा भर के लेने की बजाये उतना ही लें जितना पीना है। RO मशीन द्वारा लिए गए कुल पानी का 75% व्यर्थ हो जाता है। इसलिए कोशिश करिए कि मशीन की पाइप से जो पानी निकल रहा है उसे बाल्टी में इकठ्ठा कर लिया जाए या पाइप लम्बी करके उसे पौधों को सींचने के काम में लाया जाये। इसी तरह एसी से निकलने वाले पानी को भी सही तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है।

जब तक पर्याप्त कपड़े न हों वाशिंग मशीन का उपयोग न करें। एक बार इसका प्रयोग करने पर औसतन 95 लीटर पानी खर्च होता है। पर्याप्त मात्रा में कपड़े न होने से ये मात्रा बढ़ जाती है।

घर के आँगन में या बाल्कनी में लगाए हुए पेड़ पौधों को सुबह जल्दी या सूर्यास्त के बाद पानी दें जिससे उसका वष्पीकरण जल्दी न हो सके। कई पेड़ पौधों को सप्ताह में एक बार ही पानी की आवश्यकता होती है। इन्हें लगाने से पहले इनके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर लें जिससे पानी व्यर्थ होने से बचाया जा सके।

जल संचयन :- हम लोगों की अकेली यह आदत ही जल संरक्षण हेतु मील का पत्थर साबित हो सकती है। एक बारिश के बाद अगली बारिश से छतों से वर्षा जल का संचय करें। यह पीने, कपड़े धोने, बागवानी आदि सभी कार्यों हेतू उत्तम है। इसके लिये गाँव, शहरों में भवन निर्माण सम्बन्धी नियमों में वर्षा जल संचयन को अनिवार्य किया जाना चाहिये तथा लोगों को वर्षा जल संचय हेतु प्रोत्साहित किये जाने वाले उपाय ढूंढे जाने चाहिए।

आवश्यकता अपना *व्यवहार* बदलने की है, अपना *त्योहार* बदलने की नहीं।

आवश्यकता अपनी *सोच* बदलने की है, अपने *संस्कार* बदलने की नहीं।

तो आइए मित्रो हम संकल्प करें कि इस तरह के ढेरों छोटे-छोटे उपाय करके हम पूरा साल पानी बचाएंगे और एक दिन तो क्या एक हफ्ता होली बड़ी धूमधाम से और जोर-शोर से मनाएंगे।

रंगोत्सव की शुभकामनाओं सहित

भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- rajivmalhotra73@gmail.com