गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

प्यार ही प्यार करो ना डुबो नफ़रतों में
मत रहो जुदा आओ तुम अब ख्यालों में

जब से छुड़ा के दामन वो चले गए
दर्द पुकारता है तब से हर कराहों मे

क्यूँ ज़िंदगी इतनी इम्तिहान लेती है
उलझा के रखा अनगिनत सवालों में

यादों में तेरी जब हद से गुज़र जाती हूँ
तब ढूँढती हूँ तुम्हें उन सूखे गुलाबों में

ये रस्मों रिवाज ना जीने देंगे ना मरने देंगे
“सुवी” तुम बिन शामिल हूँ मैं उन बेबसों में

— सुवर्णा परतानी, हैद्राबाद

सुवर्णा परतानी

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