समाज के कोढ़ (2)
ज्यों ज्यों लघुकथा सम्मेलन का दिन करीब आता जा रहा है , त्यों त्यों एक नई लघुकथा जन्म ले रही
Read Moreज्यों ज्यों लघुकथा सम्मेलन का दिन करीब आता जा रहा है , त्यों त्यों एक नई लघुकथा जन्म ले रही
Read Moreमैं साहित्य का नन्हा सा कुकुरमुत्ता कवयित्री हूँ मुझे पेड़ बनते देर ना लगेगी पर शेष बचूँगी तक ना! चाटुकारता
Read Moreझटकूँ जब अपनी ही जुल्फों को भीगीं बूँदे जब इधर उधर उड़ती हुई करती जब स्पर्श मुझे! कुछ चेहरे को
Read Moreजब मैं छोटी थी बच्ची थी चोक से सिलेट पर लिखा करती थी कभी पेंसिल से लिख रब़र से मिटाया
Read Moreये पीड़ा वो पीड़ा जाने कितनी पीड़ाओं में व्यक्तित्व दबा है! देह पीड़ा में रोगों की छाया से शरीर कुंद
Read Moreएक ज़माना था चिट्ठियाँ ख़ुशियों का सबब बनती थीं दुखों के पहाड़ भी टूट पड़ते थे पत्र पढ़कर संदेसा देस
Read Moreएम्बुलेंस सायरन की तेज आवाज के साथ एक मोड़ लेकर मुख्य सड़क पर दाखिल हुई । एम्बुलेंस में वेंटिलेटर पर
Read Moreशाम को आफिस से लौटकर अपने आवास में पदार्पण करते समय मैं मोबाइल फोन पर बात भी कर रहा था।
Read Moreभाग्य और पुरुषार्थ का मिल जाए हमें संग हम बढ़ते ही जाएँगे लेकर मन में नई उमंग
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