लघुकथा

अस्तित्व

सोनम एक प्रतिभावान छात्रा थी लेकिन रिश्तेदारों के दवाब के चलते उसके बीमार पिता ने उसकी शादी बारहवीं पास करते ही कर दी| सोचा था पिता के घर तो बस पिता की सेवा में ही लगी रहेगी शादी करके ससुराल चली जाएगी तो जीवन सुख से बीतेगा उसका ,लेकिन विधि का विधान कुछ और था मनुष्य जो सोचता है वैसा कहां हो पात्ता है किस्मत के आगे सयाने से सयाना भी ठगा जाता है सो हुआ भी कुछ ऐसा ही सासू के दहेज के लिए ताने ननद की गालियाँ और पति की मार यही सोनम के जीवन का हिस्सा बन चुके थे | एक दिन पति की मार से बेहाल सोनम का हाथ अनायास ही पति के गाल पर जोर से पढ़ा एक बिजली सी कौंधी और पूरा वातावरण शांत हो गया अब सोनम में न जाने कहा से अजीब शक्ति समा गयी और उसने उसी क्षण निर्णय कर लिया की अब वो अपनी जिंदगी बर्बाद नही होने देगी | उसने पति का घर छोड़ दिया अधूरी पढ़ाई फिर चली, समय के सोपानों के साथ उसने कदम बढ़ाए। बढ़ते कदमों ने उसे स्वातंत्र्य यज्ञ का होता बनाया। संवेदना उसकी  शक्ति बनी व गुणों के वृक्ष पर कविता के प्रसून खिले और यह कविता बन गयी नारी की अनकही संवेदनाओं की कथा। साहित्य के क्षितिज पर एक ‘निहारिका’ का अवतरण हुआ, जिसमें भावों के ब्रह्माण्ड सँजोये थे। कविता के भवन में उसका सौंदर्य दीपशिखा बन चमका। भावना के सौंदर्य से भरी सोनम अब “निहारिका’ के नाम से प्रतिष्ठित होकर  एक सफल लेखिका  के रूप में अपना जीवन बिता रही थी क्योंकि अब वो अपना अस्तित्व सिद्ध कर चुकी थी |

 

 

पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर'

पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर' लेखक, विचारक, लघुकथाकार एवं वरिष्ठ स्तम्भकार सम्पर्क:- 8824851984 सुन्दर नगर, कोटा (राज.)