कविता : हाँ मैं वेश्या हूं
हाँ मैं वेश्या हूं पाप की पुड़िया हूं चंद सिक्कों की खनक में बेचती हूं अपना जिस्म पर लाख अच्छी
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Read Moreधुंध हो गया सारा जीवन,कुछ भी नज़र नहीं आता ! आशाएं अब रोज़ सिसकतीं,कुछ भी नज़र नहीं आता !! बाहर
Read Moreगुड़ की लैया नहीं मिली है, बहुत दिनों से खाने को। बचपन फिर बेताब हो रहा, जैसे वापस आने को।
Read Moreअम्मा हमने कार खरीदी यह तो बहुत काम की होती, मत कहना बेकार खरीदी। वर्षा जब होती है झम झम,
Read Moreगीत चांदनी धुंध में नहाई है आज मानवता डगमगाई है, चांदनी धुंध में नहाई है. पेड़ों
Read Moreआरोप मुक्त सुभोमय ने आज चैन की सांस ली थी. उसके मन में अनेक विचार आलोड़ित हो रहे थे. इस
Read Moreहम महलों में रहने वाले, सच्चे सुख को कैसे जानें? सच्चा सुख कैसा होता है, यह तो बस बंजारे जानें.
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