कहानी

सगाई – भाग 1

“नहीं… पापा,नहीं.. यह संभव नहीं है! नहीं तोड़ सकती मैं यह सगाई। आपने कैसे सोच लिया कि मैं इंद्रजीत से सगाई तोड़ कर कहीं और शादी कर लूं!”… कहते कहते अदिति का गला रूंध गया तथा आंखों में अश्रु भर आए।
“क्यों नहीं तोड़ सकते? सगाई ही तो हुई है, कोई शादी तो नहीं हुई जो एक दूसरे के बंधन में बंध गए और टूट नहीं सकता।”… अदिति के पापा, मिस्टर शेखर ने विचलित होते हुए कहा।
“पापा.. मैं इंद्रजीत से प्यार करती हूं! और उसे वचन दे चुकी हूं कि मैं उसी की होकर रहूंगी। कभी उससे अलग नहीं होऊंगी।”… अदिति ने रूआंसी होकर कहा।
“यह वचन तो कोई लक्ष्मण रेखा नहीं है बेटा कि जिसे पार नहीं कर सकते। कई बार ऐसा होता है, सगाई होती है फिर टूट जाती है। यह कोई नई बात नहीं है।”… मिस्टर शेखर ने अदिति को समझाते हुए कहा।
“मैं किसी और से शादी नहीं कर सकती पापा। चाहे मैं जीवन भर कुंवारी बैठी रहूं। पर इंद्रजीत के अलावा किसी को पति के रूप में स्वीकार नहीं कर सकती। यह मेरा आखरी फैसला है।”… अदिति ने दृढ़ निश्चय के साथ कहा।
“तुम समझने का प्रयास क्यों नहीं करती। इंद्रजीत के साथ पूरा जीवन कैसे बिताओगी। कभी सोचा है तुमने, कितनी परेशानी आएगी पग पग पर।”.. मिस्टर शेखर गुस्से में कमरे से बाहर निकल गये।
पापा के निकल जाने के बाद अदिति कमरे में बैठकर फफक फफक कर रो पड़ी…”मैं क्या करूं हे! ईश्वर! मुझे शक्ति दो। मैं सब कठिनाई का डटकर सामना कर सकूं। मेरे पैर ना डगमगाए आगे चलने के लिए। मैंने जो फैसला लिया है उस पर अडिग रहना चाहती हूं। दुनिया को दिखा देना चाहती हूं कि मैं इतनी कमजोर नहीं हूं कि दिए हुए वचन को निभा ना सकूं। कठिनाई देखकर पलायन कर जाऊं, यह मुझसे नहीं होगा।”

तकिए में मुंह छिपाकर आदिति खूब रोई तो उसका मन थोड़ा हल्का हुआ। बीते दिनों की बातें याद कर उसके होठों पर एक मुस्कान की सुहानी किरण बिखर गई। वह सोचने लगी..” वह भी क्या दिन थे जब इंद्रजीत से उसकी पहली मुलाकात उसकी मौसी के घर शिमला में हुई थी। वह गर्मी की छुट्टियों में मां, पिताजी के साथ शिमला के सुहाने मौसम का आनंद लेने के लिए गई हुई थी। बीकॉम फाइनल ईयर की परीक्षा समाप्त होने के बाद मां, पिताजी के साथ मिलकर शिमला घूमने की योजना बनी थी। मौसी का बड़ा बेटा शुभम का दोस्त था इंद्रजीत। दोनों आर्मी में सेकंड लेफ्टिनेंट के पद पर पदस्थ थे कश्मीर में। इंद्रजीत शिमला का ही रहने वाला था। वह छुट्टी लेकर घर आया हुआ था, पर.. शुभम को छुट्टी नहीं मिलने के कारण वह नहीं आया पाया था। एक दिन इंद्रजीत अचानक मौसी के यहां आया था।
“आंटी.. कहां हो आप, शुभम ने आपके लिए कुछ भेजा है।”… बाहर से कोई आवाज लगाया तो अदिति निकल आई देखने के लिए कि कौन है।
“आ..प.. कौन.. है? मैंने नहीं पहचाना”… आदिति ने थोड़ा झिझकते हुए कहा।
“मैं हूं इंद्रजीत।आप कौन हैं? पहली बार देख रहे हैं आपको। आंटी कहां है?”… कहते कहते इंद्रजीत और अदिति की आंखें चार हो गई थी।
“कौन…? बेटा.. इंद्रजीत, तुम कब आए? कोई खबर भी नहीं दी, एकदम अचानक!”.…कहते कहते अंदर से अदिति की मौसी शोभना बाहर आ गई थी।
आंटी.. कैसी हैं आप? शोभना का पैर छूने के बाद इंद्रजीत ने एक शाॅल उनके हाथ में थमाते हुए कहा..” लीजिए..आंटी, शुभम ने आपके लिए भेजा है।”
शोभना ने शाॅल लेते हुए इंद्रजीत से कहा..” अरे.. बेटा कब आए हो, और शुभम कैसा है?”
“मैं कल ही आया हूं आंटी शुभम एकदम मस्त है”.. इंद्रजीत ने जवाब दिया।
“यह है हमारी भांजी अदिति। दिल्ली से आई है गर्मियों की छुट्टियों में घूमने के लिए। तुम्हारे पास समय हो तो इसे थोड़ा शिमला घुमा देना। शुभम तो यहां पर है नहीं, बेचारी अकेली बोर भी हो जाएगी। शुभम के पापा और आदिति के पापा दोनों मिल बैठते हैं तो इनको राजनीति से फुर्सत ही कहां मिलती है। और हम दोनों बहने मिलते हैं तो बचपन की बातों में ही खो जाते हैं।”… शोभना ने कहा।
“हां.. हां.. आंटी, समय क्यों नहीं होगा? मैं पूरे एक हफ्ते की छुट्टी लेकर आया हूं। समय ही समय है, मुझे कोई एतराज नहीं है। अगर आप की भांजी को कोई ऐतराज ना हो तो.…!”… शुभम खुशी के मारे एक साथ में कह गया।
“क्यों.. आदिति बेटा, तुझे इंद्रजीत के साथ घूमने जाने में कोई एतराज तो नहीं है? बहुत अच्छा लड़का है और शिमला का भी है। सारी जगह जानता है। अच्छे से घुमा भी देगा और शिमला के बारे में सब कुछ बता भी देगा।”… शोभना ने अदिति से कहा।
अदिति को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, थोड़ा सकपकाते हुए, थोड़ा सा शर्माते हुए, उसने झटपट कह दिया..” नहीं.. नहीं.. मौसी एतराज कैसा? मुझे तो शिमला घूमना है। पूरा आनंद लेना है यहां के मौसम का, यहां की खूबसूरत वादियों का। मैं तैयार हूं जाने के लिए।”
“तो.. कब चलना है आपको। बता दीजिए, मैं ले चलूंगा आपको।”… इंद्रजीत का तो सब्र का बांध ही टूट रहा था। वह तो आदिति के साथ जाने के लिए मन ही मन बेचैन हो रहा था।
“आपके पास समय हो तो मैं अभी चल सकती हूं। आप थोड़ी देर इंतजार कर लीजिए, मैं तैयार होकर आती हूं।.. अदिति को भी जैसे और सब्र नहीं हो रहा था।
दोनों एक सेब के बगीचे में घूम रहे थे। अदिति ने पहली बार इतना सुंदर सेब का बगीचा देखा था। इतने सेब लगे हुए थे, देख कर उसे बड़ा आनंद आ रहा था।। वह खुशियां मन में दबा नहीं पा रही थी। उसने एक सेब तोड़ते हुए इंद्रजीत से कहा..” वाह.. क्या सुंदर बाग है, जी करता है हमेशा के लिए शिमला में ही रह जाऊं। इतना सुंदर, सुहाना मौसम, इतनी खूबसूरती प्रकृति की मैंने पहले कभी नहीं देखी। ऐसे ही बाग में हीरो, हीरोइन पेड़ों के ईद-गिर्द घूमकर गाना गाया करते हैं ना फिल्मों में? कितनी नैसर्गिक सुंदरता है यहां पर। ऐसा लगता है जैसे धरती ने अपनी गोद में इन फलों के पेड़ों को बड़े ही प्यार से सजा के रखे हैं। कौन भला जाना चाहेगा इतनी खूबसूरत वादियों को छोड़कर। मन मोह लिया मेरा इन वादियों ने।”
“तो.. मत जाइए आप वापस यहां से। हो जाइए हमेशा के लिए शिमला की। कौन आपको जाने के लिए कह रहा है। आपकी मर्जी है, आप चाहे तो हमेशा के लिए रहे भी सकती हैं।”… इंद्रजीत ने शरारत भरे नजरों से अदिति को देखते हुए बात छेड़ दी।
अदिति ने इंद्रजीत की ओर प्यार भरी नजरें डालकर कहा…” मैं कैसे रह सकती हूं यहां पर.. हमेशा के लिए? मैं तो पंद्रह दिन के लिए आई हूं, और.. आप तो एक हफ्ते के बाद चले भी जाएंगे वापस। फिर.. तो.. मुझे यहां बैठकर बोर ही होना है ना।”
“ठीक है.. मैं नहीं जाता वापस, छोड़ देता हूं नौकरी। आप भी रह जाए, आप को घुमाते रहेंगे। दोनों घूमते रहेंगे और वादियों का आनंद लेते रहेंगे। बड़ा मजा आएगा।”… इंद्रजीत ने फिर एक प्यार भरी नजर डाली अदिति पर।
दोनों दिन भर सुहानी वादियों में, पहाड़ों में, वहां के गांवों में सब जगह घूमते रहे दिन भर। उनका तो मन ही नहीं था वापस घर जाने का, पर… मजबूरी थी जाना पड़ा। जब घर पहुंची अदिति तब शाम ढल गई थी। मौसा, मौसी, मां,पापा सभी चिंता कर रहे थे।
“हम दूर दूर तक घूम कर आ रहे हैं।”.. अदिति खुशी से फूली नहीं समा रही थी।
“तुम दोनों ने कितनी देर कर दी। शाम हो गई है, हमें तो बहुत चिंता हो रही थी!”.. अदिति के मम्मी, पापा ने चिंता जताते हुए कहा।
“मेरे रहते कोई चिंता की बात ही नहीं है, अंकल, आंटी। मैं शिमला का ही हूं। अदिति को कहीं गुम हो जाने नहीं देता।”… इंद्रजीत ने खुश होते हुए कहा।
“थैंक यू इंद्रजीत! मुझे दिन भर झेलने के लिए। वैसे कल भी जाना है ना, कल भी झेलना पड़ेगा। कल कब जाना है?”.. अदिति ने खुश होते हुए पूछा।
“सुबह 8:00 बजे तैयार रहना, मैं आ जाऊंगा। दिनभर घूमेंगे, कल शिमला की मंदिरों के दर्शन करेंगे। अब मैं चलता हूं, नहीं तो मेरे मम्मी, पापा भी मेरे लिए चिंता करेंगे कि बेटा कहीं खो तो नहीं गया।”… हंसते हुए इंद्रजीत ने कहा और सब से विदा ली।
अदिति के मम्मी, पापा कुछ कहते, इससे पहले अदिति एक गाना गुनगुनाते हुए.. ये वादियां.. ये फिजाएं बुला रही है तुम्हें.. अपने कमरे में चली गई…!!

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com