सामाजिक

शाकाहारी बनकर ही इस पृथ्वी, पर्यावरण को बचा पायेंगे ?


हमारी ममतामयी माँ सदृश्य हमारी धरती , हम मनुष्यों सहित इस धरती पर उपस्थित सभी जीवों यथा नन्हें से नन्हें चींटी से लेकर इस सृष्टि की अब तक की सबसे विशालकाय जलीय स्तनधारी जीव ह्वेल { एक बड़े अफ्रीकी हाथी से लगभग 30 गुना बड़ा और लगभग 100 फुट लम्बा और 180 टन वजनी जीव } तक के लिए पर्याप्त भोजन, पानी और रहने की पर्याप्त सुव्यवस्था बहुत ही बेहतरीन ढंग से की है । अगर पृथ्वी पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का न्यायोचित ढंग से उपभोग किया जाय , तो इस धरती का कोई भी प्राणी,भूखा-प्यासा नहीं रहेगा । सभी के लिए पर्याप्त भोजन,पानी और रहने को प्राकृतिक जगह उपलब्ध है । पर्यावरण को सन्तुलित और सुव्यवस्थित करने के लिए प्रकृति ने कुछ माँसाहारी और शिकारी जानवरों को भी इस पृथ्वी पर स्थान दिया है ,जो वनस्पति खाने वाले जानवरों को सन्तुलित ढंग से शिकार कर उनके माँस खाकर अपना गुजारा करते हैं , इस प्रकार इस पृथ्वी पर मुख्यतः दो प्रकार के जीव हैं । एक शाकाहारी और दूसरे माँसाहारी । शाकाहारी जीवों और माँँसाहारी जीवों के वाह्य और आन्तरिक शारीरिक बनावट में बहुत अन्तर होता है । मनुष्य की वाह्य और आन्तरिक शारीरिक बनावट विशुद्ध शाकाहार हेतु है । परन्तु कुछ मनुष्य भी दुखद रूप से इस पृथ्वी के अन्य जीवों की निर्मम हत्या करके उनका माँस भक्षण करते हैं । अन्तरर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठित संस्था ईट-लांसेट कमीशन के 37 आहार वैज्ञानिकों ने विश्व को चेताया है कि अगर मनुष्य अपने आहार में माँस और मछली का बेतहाशा प्रयोग करता ही रहेगा तो उसको खाने से स्वयं मनुष्य को बहुत सी भयंकर बिमारियों जैसे हृदयरोग , ब्लड प्रेशर , ब्रेन हैमरेज, किडनी और पेशाब रोग,मानसिक रोग, तनाव तथा सबसे भयंकर फेफड़े ,आंत और स्तन कैंसर जैसे रोगों के होने की सम्भावना कई गुना बढ़ जाती है । इसके विपरीत शाकाहारी भोजन जिसमें हरी सब्जियों और फल जो पोषक तत्वों से भरपूर तो होते ही हैं उनमें विटामिन्स , वसा , एंटीऑक्सीडेंट ,कार्बोहाइड्रेट ,और बहुत अच्छे टाइप के प्रोटीन होते हैं,जिनमें एमीनो एसिड के अलावे मैग्नेशियम होता है, जो रक्तचाप को नियन्त्रित करने में सहायक होता है ,जो हृदयाघात और ब्रेनहेमरेज से बचाता है ,इसके अतिरिक्त शाकाहारी भोजन में संतृप्त वसा और कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बहुत कम होने से ब्लडप्रेशर नियंन्त्रित रहता है । शाकाहारी भोजन में एस्ट्रोजन नामक तत्व कम होने से फेफड़े ,आँतों और स्तन कैंसर का खतरा कम रहता है । सबसे बड़ी बात शाकाहारी भोजन करने से मनुष्य मानसिक तौर पर प्रफुल्लित और उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है । मनुष्य को अपनी वाह्य व अन्तरिक शारीरिक बनावट के अनुसार शाकाहारी भोजन ही लेना चाहिए , इससे पृथ्वी के अन्य जीवों के प्रति करूणा ,सदाशयता और मनुष्यता के साथ-साथ प्रकृति और पर्यावरण की भलाई भी अन्तर्निहित है , मसलन 1 किलोग्राम अन्न पैदा करने में 17 लीटर पानी , 1 किलोग्राम सब्जी में 45 लीटर पानी और 1 किलोग्राम माँस पैदा करने में 180 लीटर और उसको प्रसंस्करण करने में भी 1 किलोग्राम माँस में 135 लीटर पानी लग जाता है ,इस प्रकार 1 किलोग्राम माँस खानेयोग्य बनाने में 315 लीटर पानी की आवश्यकता पड़ती है । चूँकि अपनी बलि देकर मनुष्य को माँस देने वाले जानवर भी अन्न खाकर ही मोटे-ताजे होकर ही ज्यादे माँस देते हैं ,इसलिए माँस उत्पादन में अन्न की खूब खपत होती है , अमेरिका में वहाँ के उत्पादित मक्के के अधिकांश भाग को , अधिकाधिक माँस उत्पादन हेतु , वहाँ के सूअरों को ही खिला दिया जाता है । इसलिए शाकाहारी भोजन से उक्तवर्णित लाभों को विचार करके दुनिया के अधिकतर सभ्य देशों के पढ़े-लिखे और शिक्षित लोगों का झुकाव अब शाकाहार की तरफ होने लगा है ,जो स्वास्थ्य ,पर्यावरण ,जलसंरक्षण और वन्य व पालतू जानवरों के जीवन संरक्षण की महती भूमिका के साथ क्रूरता , जीवहत्या जैसी पाशविक प्रवृत्ति से अलग एक करूणामयी और मानवीय होती दुनिया भी बनाने में अपना अलग महत्व रखता है ।

-निर्मल कुमार शर्मा ,गाजियाबाद , 18-1-19

*निर्मल कुमार शर्मा

"गौरैया संरक्षण" ,"पर्यावरण संरक्षण ", "गरीब बच्चों के स्कू्ल में निःशुल्क शिक्षण" ,"वृक्षारोपण" ,"छत पर बागवानी", " समाचार पत्रों एवंम् पत्रिकाओं में ,स्वतंत्र लेखन" , "पर्यावरण पर नाट्य लेखन,निर्देशन एवम् उनका मंचन " जी-181-ए , एच.आई.जी.फ्लैट्स, डबल स्टोरी , सेक्टर-11, प्रताप विहार , गाजियाबाद , (उ0 प्र0) पिन नं 201009 मोबाईल नम्बर 9910629632 ई मेल .nirmalkumarsharma3@gmail.com