कहानी

रनिया (कहानी)

मज़दूर की बेटी की क़िस्मत में रानी बनना कहां से लिखा होता! उसके बाबा ने अपना और पत्नी का मन रखने के लिए बेटी का नाम रानी रखा और पेट काट काट कर मैट्रिक तक पढ़ाया और रानियों की तरह पाला उसे, लेकिन क़िस्मत का लिखा भला कौन टाल सकता है।
हाय रे क़िस्मत, रानी, शादी के बाद, रानी बनना तो दूर सुहागन भी नही रह सकी और जल्दी ही विधवा हो गई।
फूल सी रानी कुम्हला गई और गांव वालों की नज़र में रानी से रनिया बन गई। उसकी ज़िंदगी में बहार आने से पहले ही पतझड़ ने डेरा जमा लिया। ससुराल में दूसरा कोई था नही जो उसको सहारा देता। सुहागनों के साज श्रृंगार देखकर उसके मन में हूक सी उठती लेकिन मन मसोस कर रह जाती। रनिया मन बहलाने के लिए कभी कभी पड़ोस में धनिया मुखिया के यहां चली जाती।
सुखवन गांव अभी भी सामाजिक आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहा था। हालांकि महिला आरक्षण के चलते मुखिया बनी मैट्रिक पास धनिया, अपने गांव में सामाजिक बुराइयों के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रही थी।
फागुन का महीना अपने शरद गरम चरित्र के साथ दस्तक दे चुका था। पेड़ों के पुराने पत्ते कब के गिर चुके थे। अब नई कोपलें और नाज़ुक अंदाम पत्ते सर उठाने लगे थे। आमों के मंज़र पर भंवरे मडराने लगे थे। एक तो पंचायती का सिरदर्द, और ऊपर से शरद गरम मौसम की शिकार पचास साल की धनिया पड़ोस की रनिया से माथा दबवा रही थी।
बीच बीच में धनिया, कनखियों से कभी रनिया और कभी अपने बेटे राजू को देखती जा रही थी जो अपनी अम्मां की नज़रें बचा कर रनिया को निहार रहा था।
उनकी आंख मिचौली के बीच धनिया अचानक बोल उठी – क्यूँ रे निखट्टू, क्यूँ रनिया को निहारे जा रहा है! पसंद है का तुझे! ब्याह करेगा इससे!
ये सुनकर रनिया को तो अचानक जैसे सांप सूंघ गया। उसे काटो तो खून नहीं। अचानक से उसके हाथ थरथराने लगे। उसने पल्लु को दांतों तले दबाते हुए कहा – हाय चाची, ये क्या बके जा रही हो। एक विधवा के बारे में ऐसा बोलने से पाप लगेगा – पाप!
धनिया ने कहा – अरे क्या पाप लगेगा !
मैं भी तो विधवा हूँ, मुझसे ज़्यादा कौन समझ सकता है तेरे दर्द को। एक विधवा को किन किन कंटीले रास्तों से गुज़रना पड़ता है ये मैं जानती हूँ।
सुनो! गुप्ता के दस हज़ार का क़र्ज़दार होकर मरा था इसका बाप। गुप्ता सालों तक अपनी रक़म मेरे हाड़ मांस से वसूलता रहा। आख़िर गुप्ता को सुअर की तरह गांथ कर मारा डकैतों ने, तब जाकर जान छूटी मेरी। यहाँ विधवाओं को सम्मान कौन देता है! सभी सफ़ेद लिबास पर कीचड़ उछालने के मौक़े ढ़ूढ़ते रहते हैं।
रनिया ने कहा – ठीक है चाची! लेकिन लोक लाज भी तो कोई चीज़ होती है!
धनिया – अरे मत मारी गई है तेरी। पहले मैं भी तेरी ही तरह सोचा करती थी। मान मर्यादा, इज़्ज़त आबरू सब कुछ गंवाने के बाद समझ में आया कि विधवा होकर ज़िंदगी गुज़ारना कितना बड़ा अभिषाप है इस समाज में। जबसे मुखिया बनी, शहरों की ख़ाक़ छानने लगी, हाकिम हुकुम के साथ उठने बैठने लगी,लोगों की नीयत और सोच को समझने लगी तबसे मेरी सोच भी बदलने लगी।
राजू ने झझकते हुए कहा – अम्मां, ये क्या कहानी लेकर बैठ गई तू! ये बताओ, भाभी से कोई ब्याह करता है भला!
धनिया ने कहा – अरे तो कौन सी तेरी सगी भाभी है।
राजू – फिर भी – –
धनिया – फिर भी क्या! जब मुझे आपत्ति नहीं तो ज़माने की आपत्ति का क्या मतलब! वैसे भी मैं अंधी नहीं हूं, सब कुछ देख और समझ रही हूँ।
राजू ने अम्मां का माथा दबा रही रनिया की तरफ़ एक नज़र देखा, जिसके माथे पर पसीना छलक आया था, और फिर गमछा झाड़ते हुए बाहर निकल गया।
धनिया ने कहा – देख रनिया, एक औरत ही औरत की ज़रूरत और परेशानियों को समझ सकती है।
तेरा मरद तीन साल पहले पंडित के ट्रेक्टर से दबा के मर गया, क्या दिया उन्होंने! बीस हज़ार देने का वादा करके मुकर गए और जब मैं ने दबाव डालना शुरू किया तब जाकर मुश्किल से पांच हज़ार रूपये दिया उन्होंने।
चार साल पहले, पत्नी मर गई पंडित की लेकिन दूसरी शादी नहीं किया और दूसरों की बहू बेटियों पर लार गिराता फिरता है।
क्या फ़ायदा ऐसे लोगों के बनाए हुए बंधन में बंध कर जीने का जो ख़ुद अपने ही बनाए नियमों की धज्जियां उड़ाते रहते हैं।
रनिया ने सर से गिरे हुए पल्लू को कमर से बांधते हुए कहा – चाची – – पंडित जी का लठैत है न ज़ालिम – – उसकी बुरी नज़र है हम पर – – दो दो बार लालच दिया हमको और धमकाया भी – – लेकिन मैंने एक नही सुनी उसकी। मुल्ला होकर भी मूंह मारता फिरता है इधर उधर –
धनिया ने पान का पीक थकते हुए कहा – इसी लिए तो कहती हूँ, घर बसा ले दुबारा – – अभी उमर ही क्या है तेरी, और भी ज़माना ख़राब है।
मरने वाले जीने वाले की मदद के लिए कभी नही आते – – अपनी मदद ख़ुद करनी पड़ती है। वैसे भी क्या बुराई है मेरे राजू में – एक कमाता नहीं है बस – – कोई अमल पताई भी तो नहीं है और जब घर बसा लेगा तब कमाने भी लगेगा।
देख रही-थी, कैसे टुकुर टुकुर निहारे जा रहा था तुमको। दिल का पक्का भोला है। प्रेम करता है तुमसे – – हाँ।
सच बात तो ये थी कि रनिया को भी राजू पसंद था, बुड़बक और गंवार राजू लेकिन सामाजिक मर्यादा लांघने की हिम्मत नही थी उसमें। आज जब ख़ुद धनिया ने उसका हौसला बढ़ाया तो उसके सपनों को पंख लग गए।
हफ़्ते भर बाद होली की पुर्व संध्या पर रनिया गोबर के उपले पाथ रही थी कि अचानक राजू ने पीछे से आकर उसके चेहरे पर गोबर मल दिया। अंदर ही अंदर रनिया का रोम रोम रोमांचित हो उठा लेकिन बाहर से दिखावे के लिए उसने कहा – राम – राम – राम – राजू बाबू, तुमने तो मेरा धर्म ही भ्रष्ट कर दिया।
ये नज़ारा पीछे से दो पड़ोसनों ने देख लिया। फिर क्या था – –
बात का बतंगड़ बनते देर नही लगी – विधवा पर होली का ख़ुमार चढ़ते देखना लोगों को नागवार गुज़रा। गांव में रात भर ये घटना चर्चा का विषय बना रहा।
रात भर, राजू और रनिया ख़ौफ़ के मारे अपने अपने बिस्तर पर करवटें बदलते रहे। आंखों से नींद ग़ायब और सीने की धड़कन तेज़ थी कि पता नहीं सुबह होने पर गांव वाले क्या हश्र करेंगे।
अह्ले सुबह धनिया के दरवाज़े पर पंचायत लग गई।
जितने मूंह उतनी बातें – – सबको मौक़ा मिल गया था जी भर के कीचड़ उछालने का – – कोई धनिया से बैर साधने की फ़िराक़ में था तो कोई रनिया को बेआबरू होते देखने का ख़्वाहिशमंद।
इधर धनिया को बैठे बिठाए बुड़बक बेटे के लिए मनपसंद दुल्हन और अपने लिए सुघड़ बहू पाने का सुनहरा मौक़ा मिल गया था।
इसके पहले कि लोगों के इल्ज़ामात सीमा पार कर जाते धनिया ने भरी पंचायत में रनिया को अपनी बहू बनाने का ऐलान कर दिया।
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समाप्त

अब्दुल ग़फ़्फ़ार

अब्दुल ग़फ़्फ़ार

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