कहानी

अपने अपने हिस्से का थोड़ा थोड़ा त्याग

“आ-रही – हूं – -”
हुमैरा व्हीलचेयर डगराते हुए दरवाज़े पर आई और अपनी स्टीक से चिटखिनी गिराते हुए दरवाज़ा खोला। सामने उसकी सांवली सलोनी सहेली सारा हाथों में नारंगी की थैली लटकाए मुस्कुरा रही थी।
” कैसी हो?” सारा ने सोफे पर बैठते ही सवाल किया।
“ठीक हूं।” कहते हुए हुमैरा किचन की तरफ़ व्हीलचेयर डगराने लगी।
सारा भी उठकर साथ साथ चलते हुए किचन तक गई। दोनों सहेलियों ने साथ मिलकर चाय और चिप्स तैयार किया।
किचन से वापसी में सारा ने पूछा – “फ़रहाद का प्यार पहले जैसा रहा कि नहीं?”
हुमैरा ने सारा को चाय का कप बढ़ाते हुए कहा।
“इस ज़माने में विक्लांग पत्नी का बोझ ढोने वाले कितने लोग मिलेंगे। ख़ुदा का शुक्र है कि फ़रहाद जैसा शौहर मुझे मिला। रोज़ नहलाने, कपड़ा पहनाने से लेकर नाश्ता खाना बनाने तक में मेरी मदद करते हैं, फिर अपने काम पर जाते हैं। लेकिन अफ़सोस – – की मैं उनके लिए मुकम्मल नही रही।”
तभी फ़रहाद की मोटरसाइकिल रुकने की आवाज़ बाहर आई।
“देखो वो आ गए” ये कहते हुए हुमैरा अपनी व्हील चेयर डगराते हुए दरवाज़े की तरफ़ चल पड़ी।
फ़रहाद ने अंदर दाख़िल होते ही कहा –
“दवा खाई आप ने?”
वो – – दर असल सारा आई है – – इसी में, मैं भूल गई थी। अभी खा लेती हूं।
फ़रहाद ने सारा को सलाम किया और पूछा ” कैसी हैं आप?”
” जी – सब अल्लाह का करम है। मैं ठीक हुँ। बहुत दिन हो गए थे हुमैरा से मिले हुए। अॉफ़िस से जाते हुए सोचा कि आज मिलती चलूँ।”
” बहुत अच्छा किया। मैं तो चाहूंगा कि आप रोज़ हमारे घर आएं। ये हमारे लिए ख़ुशक़िस्मती की बात होगी।”
ये कहते हुए फ़रहाद ने दवा की थैली से दो टैब्लेट्स निकाले और हुमैरा की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा –
“मैं बार बार समझाता हूं कि दवा वक़्त पर ले लिया करें लेकिन आपको तो इसका ख़याल ही नहीं रहता।”
सारा हैरत से फ़रहाद को देख रही थी जो पैरों से माज़ूर बीवी का कितना ख़्याल रखने वाला शौहर था।
हालांकि सारा पहले भी कई बार हुमैरा से मिलने आ चुकी थी लेकिन फ़रहाद हुमैरा का इतना ख़्याल रखता होगा ये उसने पहले महसूस नही किया था। उसने सोचा कि, माना ज़िंदगी बहुत ख़ूबसूरत है लेकिन इसमें बहुत सारे मसायब भी हैं जिनका सामना करना पड़ता है।
शादी के सिर्फ़ तीन महीने बाद की बात है। एक दिन फ़रहाद और हुमैरा मोटरसाइकिल से कहीं जा रहे थे। रोड में बने एक गहरे गड्ढे पर फ़रहाद की नज़र नही पड़ी जिसमें मोटरसाइकिल का चक्का पड़ते ही हुमैरा उछल कर सड़क पर जा गिरी।
फ़रहाद भी संतुलन खोकर गिर पड़ा। तभी हुमैरा की दिलदोज़ चीख़ सुनकर उसका ध्यान सड़क पर पड़ी हुमैरा की तरफ़ गया।
जहां पीछे से आ रही ईंट से लदी एक ट्रैक्टर ट्रॉली हुमैरा के पैरों को रौंदती हुई निकल रही थी।
वो हवास बाख़्ता होकर होकर दौड़ा लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। हुमैरा बेहोश हो चुकी थी और उसके पैरों के नीचे से ख़ून बहने लगा था।
उसने पीछे से आ रही अॉटो को रोका और राहगीरों की मदद से हुमैरा को लादकर हॉस्पिटल की तरफ़ भागा। वहां डॉक्टरों ने देखने के बाद हुमैरा को हड्डी के बड़े हॉस्पिटल में रेफर कर दिया।
अगले दिन हड्डी हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने बताया कि हुमैरा के दोनों पैर बुरी तरह ख़राब हो चुके हैं इसलिए उन्हें काटना पड़ेगा।
ये सुनकर फ़रहाद की हालत पागलों जैसी हो गई। उसकी दुनिया बेरंग हो चुकी थी। उसे कुछ सुझाई नही दे रहा था। लेकिन होनी को कौन टाल सकता है।
बहरहाल एक हादसे ने पर्वाज़ से पहले ही हुमैरा के परों (पंख) को कतर दिया।
उस हादसे को गुज़रे एक साल बीत चुके हैं। फ़रहाद और हुमैरा में आज भी वही मुहब्बत क़ायम है जो शादी के वक़्त हुआ करती थी।
दर असल फ़रहाद की शादी की बात पहले सारा से ही चली थी लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था।
सांवली होने के कारण आज तक सारा की शादी नही हो पाई है। 32 साल की सारा एहसास ए कमतरी का शिकार होने लगी है।
अपनी सहेली की क़िस्मत पर सारा को रश्क होता था कि फ़रहाद जैसा प्यार करने वाला शौहर उसकी क़िस्मत में नहीं लिखा था।
“कोई रिश्ता आया कि नहीं?”
हुमैरा की आवाज़ सुनकर सारा का ध्यान टूटा और अपने ख़्यालात से बाहर निकल आई।
“नहीं यार! सबको मक्खन जैसी लड़की चाहिए। लगता है इस काली कलूटी की क़िस्मत में शादी लिखा ही नहीं है।”
सारा के इस जुमले से पूरे कमरे में संवेदना की गहरी लहर दौड़ गई। उसके चेहरे की उदासी और छलकने के लिए बेताब उसकी आंखें देखकर उसकी आंतरिक वेदना का सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता था।
एक ऐसी लड़की जो अपने सांवले रंग की वजह से बार बार नापसंद की जा चुकी थी, उसका एहसास ए कमतरी का शिकार होना स्वाभाविक ही था।
फ़रहाद और हुमैरा ने एक दूसरे की आंखों में तैरते हुए सारा के दर्द को महसूस किया।
अचानक हुमैरा बोल पड़ी –
“क्या तुम मेरी सौतन बनना पसंद करोगी?”
एक साथ फ़रहाद और सारा के मूंह से निकला –
” क्या – – – ???”
फ़रहाद ने कहा – “आप पागल हो गई हैं?”
सारा ने कहा – “ये क्या कह रही हो?”
” हां – – हम तीनों को अपने अपने हिस्से का थोड़ा थोड़ा त्याग करना पड़ेगा! फिर हम तीनों की ज़िन्दगी संवर सकती है।”
तीनों बारी बारी से एक दूसरे का चेहरा ताक रहे थे लेकिन आगे कहने के लिए अल्फ़ाज़ साथ नहीं दे रहे थे।
फ़रहाद और सारा इस अप्रत्याशित सवाल के लिए बिल्कुल तैयार नही थे।
एक एक लम्हे – – सदियों में सफ़र करने लगे।
दस – बीस – तीस – मिनट बाद ख़ामोशियों के सब्र का बांध टूटा – –
सारा ने कहा -” जज़्बाती मत बनो हुमैरा! ज़िंदगी कोई दो दिन की नहीं, बड़ी लंबी होती है – – आगे चलकर – –
फ़रहाद ने कहा – “अचानक ये क्या सूझा आपको – – मैं समझ नहीं पा रहा हूँ – – आख़िर क्यों – –
हुमैरा ने कहा -” हम तीनों को एक दूसरे की ज़रूरत है। तीनों एक दूसरे का ख़्याल रखेंगे तो कितनी हसीन बन जाएगी ये दुनियां – –
फ़रहाद और सारा ने एक दूसरे को देखा फिर दोनों की निगाहें हुमैरा के पैरों की तरफ़ उठ गईं – –
हुमैरा ने व्हील चेयर डगराते हुए एक हाथ से फ़रहाद का हाथ और दूसरे हाथ से सारा का हाथ पकड़ा और दोनों को एक दूसरे का हाथ थामने पर मजबूर किया।
हुमैरा ने कहा – “इंसान अगर चाहे तो हालात को अपने बस में कर सकता है।”
फ़रहाद और सारा के हाथ लरज़ते हुए आपस में मिले और दोनों ने हुमैरा के हाथों को थाम लिया। एक साथ तीन जोड़ी हाथ मिलकर एक दायरे की शक्ल में गोल गोल घूमने लगे – –

समाप्त

अब्दुल ग़फ़्फ़ार

अब्दुल ग़फ़्फ़ार

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