कविता

फिर सदाबहार काव्यालय- 41

धूप का टुकड़ा (कविता)

आज सुबह
धूप के टुकड़े से
मुलाकात हुई
कुछ बात हुई
मैंने कहा,
“रुई के फाहे जैसे
धूप के टुकड़े
तुम झिलमिल शामियाने जैसे
बड़े आकर्षक लग रहे हो
पहले तो कभी
तुम्हारा इतना सुंदर रूप
कभी दिखाई नहीं दिया
आज फुरसत से सजे हो
बड़े खूबसूरत लग रहे हो!”
धूप का टुकड़ा बोला,
“मैं तो हमेशा से ही ऐसा हूं
फिर खूबसूरती तो
देखने वाले की
आंखों में होती है
शायद आज तुम्हारी आंखें ही
खूबसूरती का पैमाना बनी हुई हैं
कजरारे काजल से सजी हुई हैं
तभी मैं
खूबसूरत शामियाना लग रहा हूं
तनिक रुको
तुम्हारी यह उपमा सुनकर
मैं भी मन में मंथन कर रहा हूं
सच तो है
मैं तो हूं ही शामियाना
आज तक मैंने ही
खुद को नहीं पहचाना
मेरे आते ही आसमान में
एक तिरपाल-सा लग जाता है
सारा संसार उसके नीचे सज जाता है
आज तुमने मुझे अपने आप से मिला दिया है
जीवन को देखने का
एक नया दृष्टिकोण दिखा दिया है
आओ हम तुम दोस्ती कर लें
एक दूसरे को अंक में भर लें
सिखाएं एक-दूसरे को खुश होने के गुर
एक दूसरे के कष्ट हर लें,
एक दूसरे के कष्ट हर लें,
एक दूसरे के कष्ट हर लें.
लीला वानी

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मेरा संक्षिप्त परिचय
मुझे बचपन से ही लेखन का शौक है. मैं राजकीय विद्यालय, दिल्ली से रिटायर्ड वरिष्ठ हिंदी अध्यापिका हूं. कविता, कहानी, लघुकथा, उपन्यास आदि लिखती रहती हूं. आजकल ब्लॉगिंग के काम में व्यस्त हूं.

मैं हिंदी-सिंधी-पंजाबी में गीत-कविता-भजन भी लिखती हूं. मेरी सिंधी कविता की दो पुस्तकें, एक पुस्तक भारत सरकार द्वारा और दूसरी दिल्ली राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित हो चुकी हैं. कविता की एक पुस्तक ”अहसास जिंदा है” तथा भजनों की अनेक पुस्तकें और ई.पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है. इसके अतिरिक्त अन्य साहित्यिक मंचों से भी जुड़ी हुई हूं. मेरे दो शोधपत्र, एक शोधपत्र दिल्ली सरकार द्वारा और एक भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत हो चुके हैं.

मेरे ब्लॉग की वेबसाइट है-
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “फिर सदाबहार काव्यालय- 41

  • लीला तिवानी

    सुबह-सवेरे ऑस्ट्रेलिया के टी.व्ही. रूम की खिड़की खोलते ही धूप का जो नजारा दिखा, उसका काव्यमय नजारा आपकी नज़र है. आपके नजरिए की प्रतीक्षा है.

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