लघुकथा

लघुकथा : कोरोना काल

“सब्जी ले लो सब्जी,।” इस कोरोना संकट में भी अपनी जान जोखिम में डाल कर सब्जी वाला गली मोहल्लों में चक्कर लगा रहा था।
मई की झुलसा देने वाली गर्मी में वह भूखा -प्यासा ठेले धकेलता हुआ चला आ रहा था। सुबह आठ बजे से दोपहर एक बजे तक शासन प्रशासन द्वारा लॉक डाउन में थोड़ी छूट थी। अब तो बारह बजने को है।आज उसकी सब्जियां बिकी नहीं है। वह निराश भाव से बंद दरवाजों के पास जाकर आवाज लगाता रहा।तभी कॉलोनी में एक घर का दरवाजा खुला । सब्जी वाला उत्साहित सा वहां पहुंच गया।मुहँ पर मास्क लगाए मिसेज शीला ने दूर से ही पूछा-“क्यों सब्जी वाले टमाटर कैसे भाव हैं?”
सब्जी वाले ने बताया कि टमाटर बीस रुपये किलो हैं।भिंडी तीस रुपये, गोभी चालीस ।ऐसे ही सब सब्जियों के दाम उसने बताए।
यह सुनकर मिसेज शीला ने आँखे तरेरते हुए कहा,-“अरे भैय्या क्या लूट मचा रखी है।कोरोना संकट है तो क्या सब्जियों को आसमान पर चढ़ा दोगे।इतनी महंगी सब्जी ।कुछ कम करो तो लुंगी वरना आगे जाओ।’
मिसेज शीला ने आखरी दांव फेंका।अक्सर वो फेरी वालों से ऐसे ही लेन – देन करती हैं।
सब्जी वाले ने कहा,” क्या बहन जी, हमारा फसल तो वैसे ही कोरोना काल के चलते चौपट है। मजदूर नहीं मिलते ।सब्जी बाड़ी में काम भी तो करना पड़ता है।ऊपर से अंधड़ और ओले पानी ने रही सही कसर निकाल दी। हमारा तो बहित नुकसान हो गया है। जैसे -तैसे मेरी बिटिया की शादी इस महीने होने वाली थी पर कोरोना के चलते नहीं हो सका। हमारा सारा इन्तजाम व्यर्थ चला गया। क्या बताएं बहन जी भगवान भी गरीबों पर ही जुल्म ढाता है। बेटा मजदूरी करने बिहार गया है ।आ न सका ।वो वहां भूखा -प्यासा अकेला पड़ा है। हम आपको क्या-क्या बताएं बहनजी ।हम आपको क्या लूटेंगे? यह कहता हुआ वह लौटने लगा। तभी सामने वाली एक महिला ने उसे पुकारा।सब्जी वाला निराश भाव से उनके दरवाजे पहुंचा।
घर की मालकिन वृद्धा थीं। उन्होंने बिना मोल भाव करे ही टमाटर, भिंडी और कई सब्जियां तुलवा ली।
उन्होंने सब्जी वाले से कहा-” बेटा, मै न तुम्हारी सारी बातें सुन रही थी।मैं तुम्हारा और तुम्हारे जैसे लागों का दुःख-,दर्द समझ रही हूं।इस विकट परस्थिति में आज जरूरी है कि हम एक दूसरे की सहायता करें ।खासकर निर्धन गरीब और जरूरत मन्दों की सहायता करें। उनका सहारा बनें। “यह कहते हुए उस वृद्धा ने सब्जी वाले को दो सौ का नोट दिया। सब्जी वाले ने कहा-“,माई, मेरे पास चिल्हर पैसे नहीं है क्योंकि अभी तक मेरी बोहनी नहीं हुई है।
उस वृद्धा ने कहा- कोई बात नहीं बेटा, यह तुम रख लो।मेरी ओर से तुम्हारे बच्चों को कुछ खिला देना। यह एक मां की ओर से है।”
यह सुनकर सब्जी वाले की आँखों में आसूं आ गए।उसने रोते हुए कहा-“, काश सब आपकी तरह दूसरों का दर्द समझे तो फिर यह दुनिया भी जन्नत बन जाएगी।सब तरफ प्रेम की वर्षा होगी। हम सब मिलकर इस कोरोना से भी मुक्त हो जाएंगे।”
सामने वाली पड़ोसन मिसेज शीला यह सब देख सुन रही थी।वह सोचने लगी।सच है जब वह किसी बड़े मॉल या बड़े शोरूम में जाती हैं तो मुँहबोले दाम में चीजें ख़रीद लेती है। वहां कभी मोल भाव नहीं करती है पर सब इन गरीब लोगों ऐसा व्यवहार करते हैं चाहे रिक्शा वाला हो,सब्जी वाला या कोई मजदूर हो।हम इन गरीब मजबूर और कमजोर लोगों से ऐसा क्यों करते हैं?
मिसेज शीला को अपनी गलती का एहसास हो गया।

— डॉ. शैल चन्द्रा

*डॉ. शैल चन्द्रा

सम्प्रति प्राचार्य, शासकीय उच्च माध्यमिक शाला, टांगापानी, तहसील-नगरी, छत्तीसगढ़ रावण भाठा, नगरी जिला- धमतरी छत्तीसगढ़ मो नम्बर-9977834645 email- shall.chandra17@gmail.com