कविता

आन्तरिक संवाद 

संवाद जीवन का शक्तिशाली शब्द है
संवाद कभी-कभी मौन रहकर भी शक्तिशाली होता है।

1- पगली हाँ सम्भाल ले,
कैसे छूट पड़ा तेरा आँचल,,
देख बिखरती हैं, मणि रासि
अरी उठा बेसुध चंचल ,,।
तुम्हें देख सुध खो बैठी
तुम्हारे मस्तक पे जो मणि है,
तुम्हारे नयनों की जो ज्योति है,,
वो इन बिखरती मणियों में कहाँ
तेज रह गया ।जो आँचल तुमने खींचा था,
वो तुम्हारा ही रह गया, अब सम्भाले न सम्भलता,,।।

2- मैं चिड़िया बनकर आऊँगी तेरे द्वार
पर तो जाल मत बिछाना,
में तितली बनकर आऊँगी फूलों पर
बस मुस्कुराना,
मैं यादें बनकर आऊँगी बस,
चुप रहना बातें करना,
मत कहना कि तुम कौन हो,,
पहचाने जाने हम कौन हैं,।

3-बस ऐसे ही मुझे महसूस करना,
चुप रह कर बहुत कुछ कह जाऊँगी
कुछ वक्त निहार लो ,फिर मत कहना कुछ नहीं कहा
और उड़ गयी,
खुशबू थी मिट गयी, तितली थी
बरसात में फूलों में सिमट गई,
चुप रह जाऊँगी कुछ नहीं कहूँगी,
पर तुम ये मत कहना, तुम कौन हो
जानी पहचानी सी,
यादें बहुत हैं तुम्हारे ह्रदय से जुड़ जाने की
ह्रदय के द्वार खुले हैं, कहाँ जरूरत है
जान पहचान लगाने की,
साँसारिक धागों के जालों में कहाँ फंसेगे हम
हमें तो चाह थी उड़ जाने की,,
बस सिर्फ तुम्हारे ह्रदय में बस जानें की,,।।

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ

स्नातकोत्तर (हिन्दी)