सामाजिक

समय की उपयोगिता और महत्व

हम सभी के पास एक बात होती है, जो हमेशा हमें प्रत्येक परिस्थिति में सम्भलने का हौसला प्रदान करती है और वो है बदलता समय। क्योंकि हम सभी जानते हैं, कि समय कभी एक जैसा नहीं रहता है। अगर आज हमें दुःख और परेशानी है तो निश्चित ही कल नहीं होगी। समय एक ऐसा चक्र है जो हमेशा घूमता ही रहता है। यह कभी स्थिर नहीं होता। लेकिन उस वक़्त क्या होता जब समय रुक जाता? एक ही जगह स्थिर हो जाता। जिसके पास सब कुछ है, खुशियां हैं वो तो कभी न चाहेगा कि उसका वक़्त बदले। लेकिन जो दुखी है, वो इसी तसल्ली के साथ समय व्यतीत करते हैं कि उनका ये वक़्त भी बदल जाएगा ।
अगर कभी ऐसा होता कि वक़्त एक जगह थम जाता तो न रात होती न दिन होता, न ही कभी ऋतुएँ परिवर्तित होती। मतलब कि न सुबह होने की खुशी और न कभी मौसम बदलते की। हम जो बदलती ऋतुओं का लुत्फ लेते हैं वो भी कभी न ले पाते। मतलब सीधी सी बात ये है कि अगर समय रुकता तो हमारी जिंदगी भी न होती क्योंकि इस तरह से जीना सम्भव ही नहीं है। क्योंकि जीवित होने की पहचान भी यही है कि पानी की बहती धारा की तरह हम अपनी जिंदगी में भी क्रियाशील रहें।
समय किसी के लिए नहीं रुकता, जिस तरह से समय के रुक जाने पर जीवन संभव नहीं है, ठीक उसी प्रकार इंसान का भी किसी एक घटना या खुशी में रहना सम्भव नहीं है। क्योंकि कहा जाता है कि इंसान की जिंदगी में कितना भी बड़ा दुःख आ जाए, बड़े से बड़ा तूफान आ जाए, उस परेशानी और दुःख से निकलने में उसे मात्र तीन महीने लगते हैं, उसके बाद वो खुद को संभालने लगता है और अगर किसी के साथ ऐसा नहीं होता तो वह अवसाद से पीड़ित माना जाता है। हम सबके साथ अक्सर ऐसा होता है कि हम सुख के समय को भूल जाते हैं। सुख का समय हमें बहुत छोटा लगता है अपेक्षा दुःख के। हम में से शायद ही ऐसा कोई हो जिसने अपने जीवन में बुरा वक्त न देखा हो, लेकिन कुछ लोग उस बुरे वक्त से सीख लेकर उसे जिंदगी का हिस्सा मान कर आगे बढ़ जाते हैं, तो कुछ लोग अपनी जिंदगी को उसी जगह रोक लेते हैं। लेकिन क्या ये सब सही है? निश्चित  ही ये बहुत गलत है कि हम किसी भी एक घटना में उलझ कर नहीं रह सकते, क्योंकि सुख और दुःख एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं। जब हम दिन के बाद रात के होने का शोक नहीं करते क्योंकि हम जानते हैं कि सुबह भी निश्चित ही होगी, इसलिए हम दिन- रात  को लेकर हमेशा बेफिक्र रहते हैं। क्योंकि जिस तरह से पानी का बहाव नहीं रुकता और अगर रुक जाए तो उसके काई लग जाती है। जिस तरह से हवा का चलना नहीं रुकता तो हम अपनी जिंदगी को कैसे रोक कर रख सकते हैं।ये प्रकृति का नियम है कि जो कुछ भी सजीव है उसे तो गतिशील होना ही है और अगर प्रकृति के नियमों की अवहेलना करते हैं तो हम सिर्फ एक मृत वस्तुओं के समान ही होते हैं।
प्रकृति में सिर्फ इंसान ही एक मात्र ऐसा प्राणी है जो अपने सुख-दुःख को एक -दूसरे से आपस में साझा कर सकते हैं,।अपनी पीड़ा को वर्णित कर सकते हैं। लेकिन पशु-पक्षियों के साथ ऐसा नहीं होता उन्हें बेशक पीड़ा का अनुभव तो होता है लेकिन वो किसी से कह नहीं सकते। क्योंकिं इंसान के जितना सौभाग्यशाली दूसरा कोई जीव नहीं है। हम अपने समय को कभी भी एक जगह रोक कर नहीं रख सकते। आज के समय में इंसान ने न जाने कितने ऐसे आविष्कार किये हैं, जिनसे हमारी जिंदगी बहुत आसान हो गयी है। जो कुछ भी पिछले समय में असम्भव सा लगता था, वो सब आविष्कार कर दिखाए। लेकिन अब हम ये कह सकते है कि इंसान के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है। वो जो चाहे वो सब कर सकता है। लेकिन आज भी समय को रोकना उसके लिए नामुमकिन है और आगे भी रहेगा।  हम घड़ी की सुईयों को पकड़ के जरूर रख सकते हैं  लेकिन फिर भी समय को कभी नहीं पकड़ पाएंगे।  जरा सोचिये कि अगर ऐसा हो जाता तो क्या होता? जो लोग सुखी हैं, वो हमेशा सुखी ही रहते और जो दुःखी हैं वो हमेशा दुखी ही रहते और जो वक्त को रोकने की तकनीक जान जाता वो हमेशा के लिए सुखी हो जाता और जो ऐसा करने में असमर्थ होता उन पर शायद हुकूमत की जाती।
एक ऐसी बात जिसे सुनकर सुखी लोग दुःखी होने लगते हैं और दुःखी लोग सुखी। वो यह है कि-“यह वक्त भी गुजर जाएगा”। इसलिए समय के साथ गतिशील होना बेहद जरूरी है फिर चाहे हम एक-एक कदम आगे बढ़ाएं। क्योंकि कबीरदास जी कहते है कि-
  धीरे-धीरे रे मन, धीरे सब-कुछ होय।
  माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।।
— जूली परिहार

जूली परिहार

टेकचंद स्कूल के पास अम्बाह, मुरैना(म.प्र.) मोबाइल नं-8103947872 ईमेल आईडी-julieparihar123@gmail.com