लघुकथा

आपदा से अवसर (संस्मरणात्मक लघुकथा)

आज एक समाचार पढ़ने को मिला-
”दो गज दूरी’ की जरूरत ने बदल दिया अंग्रेजों का सिस्टम”
शीर्षक आकर्षक था, इसलिए पूरा समाचार पढ़ा. कोरोना संकट के चलते अब तक रेलवे के अधिकारी पटरियों की निगरानी के लिए जो पुश ट्रॉली यूज करते थे, उसमें सोशल डिस्‍टेंसिंग मेंटेन नहीं हो पाती थी. इनोवेशन से अंग्रेजों के सदियों पुराने सिस्‍टम को बदलना आवश्यक हो गया था. इसलिए पुश ट्रॉली का विकल्प ढूंढा गया, अब मॉड्युलर पेडल ट्रॉली से निरीक्षण हो रहा है. आनंद-ही-आनंद हो गया. लॉकडाउन में कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए रास्ता निकालने से कंवेंशनल पेडल ट्रॉली का वजन भी कम हो गया और अब चार ट्रॉलीमैनों की जरूरत भी खत्म हो गई. आपदा को अवसर में बदल दिया गया था.
इस समाचार ने मुझे भी स्मृतियों के गलियारे में ला खड़ा कर दिया. मार्च 2020 में कोरोना ने भारत में पैर पसारने शुरु कर दिए थे. लॉकडाउन शुरु हो गया था. सोशल डिस्‍टेंसिंग मेंटेन रखने की जोरदार अपील चल रही थी. इधर नवरात्रि पर्व आने वाला था. नवरात्रि पर्व यानी भजन-कीर्तन के रसियाओं के लिए एक आनंद पर्व! लेकिन नवरात्रि पर्व मने कैसे?
इस आपदा को भी अवसर में बदल दिया गया. नवरात्रि पर्व मना, बराबर मना और जोरदार मना, लेकिन वर्चुअल. वाट्सऐप पर नवरात्रि ग्रुप बन गया. हमें भी उसका सदस्य बनाया गया और भजनों के ऑडियो-वीडियो आने लग गए. मौज लग गई.
बचपन से ही हमें भजन गाने-लिखने का बहुत शौक था. हम अपने लिखे ही भजन गाने लगे. प्रभु-कृपा से इन भजनों से खूब रौनक लगती थी और जोरदार डांस भी होने लगा. सो हमने भी भजन भेजने का मन बना लिया.
पर ऑडियो-वीडियो बने कैसे? घर में सब लोग मोबाइल के रसिया हैं. इसलिए हमने तो सिर्फ फोन सुनने और कभी-कभी फोन करने के अतिरिक्त मोबाइल का कोई प्रयोग न किया था, न सीखा था. पर कुछ तो करना था न! सो हमने ऑडियो बनाना सीख लिया और नवरात्रि ग्रुप में सक्रिय भाग लेना शुरु कर दिया.
यहां भी हमारे भजनों की धूम मच गई, क्योंकि ये सभी भजन हमारी अपनी प्रकाशित पुस्तक से थे और वह भजन-संग्रह लगभग सभी के पास था. सभी लोकप्रिय 108 भजनों की रिकॉर्डिंग हो गई. कई सालों से यह सपना मन में पल रहा था, लॉकडाउन में पूरा हो गया. मित्रों और नाते-रिश्तेदारों को भी भजन बहुत पसंद आ रहे थे. सुपुत्र जी ने अनेक भजनों का खूबसूरत दृश्य ऑडियो बना दिया, जो यू.ट्यूब पर बहुत पसंद किए जाने लगे. न उम्र आड़े आई, न विरल-विकट परिस्थितियां.
ग्रुप का काम बराबर चल रहा था. देखते-देखते श्री गणेशोत्सव भी आ गया. अब श्री गणेशोत्सव भजनमाला के भजनों की रिकॉर्डिंग शुरु हो गई है. जब हम ये भजन रिकॉर्ड कर रहे होते हैं, पतिदेव को झूमता-नाचता हुआ पाते हैं. बेटा तो रिकॉर्डिंग सुनकर अनेक बार झूम-नाच चुका है, वह कई बार बता चुका है.
आपदा एक अवसर बन गया था. आपदा के इस अवसर से आनंद-ही-आनंद की बौछार हो गई थी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “आपदा से अवसर (संस्मरणात्मक लघुकथा)

  • लीला तिवानी

    मन में सुदृढ़ संकल्प और साहस हो तो किसी भी परिस्थिति में, किसी भी उम्र में, सब कुछ करना-सीखना संभव है.

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