सामाजिक

नागालैंड की संगतम जनजाति

संगतम जनजाति के लोग मुख्य रूप से किफिरे जिले में रहते हैं। वर्ष 1870-1880 के दौरान वुडथ्रोप के नेतृत्व में ब्रिटिश सर्वेक्षण टीम ने पहली बार उत्तरी संगतम क्षेत्र में प्रवेश किया था । जब ब्रिटिश अधिकारियों ने इस समुदाय के बारे में पूछताछ की तो लोगों ने उत्तर दिया कि वे लोग संगडंग (अब ज़ुन्हेबोतो जिले के अंतर्गत सतमी) से देशांतरित होकर आए हैं जो उनका पैतृक गाँव था। इस प्रकार अंग्रेजों द्वारा संगडंग शब्द की व्याख्या संगतम के रूप में की गई । जिस मचान अथवा प्लेटफार्म पर पारंपरिक घर बने होते हैं उस मचान को भी यहाँ “संगडंग” कहते हैं I संगतम शब्द का पहला उल्लेख अंग्रेजों द्वारा असम प्रशासनिक रिपोर्ट- 1889 में मिलता है I पीढ़ी -दर – पीढ़ी चल रहे मौखिक इतिहास के अनुसार संगतम समुदाय उन पहले समूहों (अब नागा) में से एक था जिन्हें मंगोलिया से चीन लाया गया था और उन्हें चीन की महान दीवार के निर्माण में लगाया गया था । इस समूह को चीन की मुख्य भूमि से अलग रखा गया था और मुख्य आबादी से भिन्न दिखाने के लिए उनके कान छिदवा दिए गए थे। निर्माण स्थल पर उत्पन्न हो रही कठिनाई के कारण नागाओं के इस समूह ने वह स्थान छोड़ दिया और दक्षिण में बर्मा (म्यांमार) की ओर प्रस्थान कर मैखेल में बस गए। कुछ नागा मैखेल से पलायन कर वर्तमान खेजखेनोमा में बस गए। खेजखेनोमा से संगतम समुदाय पुनः शुकुमूकोह, मुत्साली और फिर खुजा नामक स्थान पर चला गया, लेकिन वे लंबे समय तक वहां भी नहीं रह सके I दूसरे समूह ने नदी को पार नहीं किया, लेकिन पश्चिम में किलोरु, तुकुनसा गए और अंततः निंगेंग (नुनुमी) गांव में बस गए। कुछ अशांति के कारण संगतम समुदाय बहुत दिनों तक इस गाँव में भी नहीं रह सका और दो समूहों में बँट गया । एक समूह पूर्व में चला गया और अंततः यांग्थर (थिंगसा) में बस गया और दूसरा समूह उत्तर की ओर चला गया और अंत में हुरोंग गांव में बस गया I संगतम जनजाति अपने विश्वासों और संस्कृति को व्यक्त करने में कुशल है। विभिन्न अनुष्ठानों और समारोहों में येलोग अपनी संस्कृति को प्रदर्शित करते हैं I उनके प्राचीन संगीत और लोक नृत्य भी उनकी अद्वितीय लोकपरम्परा को प्रतिबिंबित करते हैं । संगतम जनजाति द्वारा कुल बारह त्योहार मनाए जाते हैं जिनमें से मोंगमोंग सबसे अधिक महत्वपूर्ण त्योहार है और इसे गर्व व उत्साह के साथ मनाया जाता है। राज्य की एक व्यापक रूप से प्रशंसित जनजाति होने के नाते इनके मोंगमोंग त्योहार को नागालैंड के लोकप्रिय त्योहारों में से एक माना जाता है। मनोरंजन इस त्योहार का मूल तत्व है जिसके कारण इसका नागालैंड के समृद्ध पर्यटन में योगदान है। यह त्योहार मुख्य रूप से फसल की विषय वस्तु पर केंद्रित है। जीवन में सुख – समृद्धि की कामना से भगवान की पूजा की जाती है और इस त्योहार के माध्यम से उनको धन्यवाद भी दिया जाता है। इस उत्सव की तैयारी के लिए पूरे जिले में छुट्टी घोषित कर दी जाती है I इस अवसर पर अनेक समारोह, भोज और प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है। यह संगतम समुदाय के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। त्योहार का प्रमुख विषय गृह देवता की पूजा और चिमनी में खाना पकाने के तीन पत्थरों से संबंधित हैं। त्योहार हर साल सितंबर के पहले सप्ताह में मनाया जाता है। मोंगमोंग त्यौहार का अर्थ है हमेशा के लिए एकता I मोंगमोंग हर साल बहुत सावधानी से मनाया जाता है और यह छह दिनों तक चलता है। इस त्योहार का उद्देश्य है ईश्वर से अच्छी फसल और अनाज के लिए प्रार्थना करना जिसके लिए ग्रामीणों ने साल भर मेहनत की है। सोहसु भी संगतम समुदाय का एक महत्वपूर्ण त्योहार है I इस त्योहार को आमतौर पर ‘वी तंग’ त्योहार के रूप में जाना जाता है I यह त्योहार मार्च महीने में नए खेतों में बीज बोने से पहले वसंत ऋतु में मनाया जाता है। सर्वप्रथम गाँव के पुजारी नए खेत में जाते हैं और खेतों की सफाई करते हैं I आग लगाकर जंगल की सफाई करने के बाद वे अस्थायी झोपड़ी का निर्माण करते हैं और अच्छी फसल और प्राकृतिक आपदाओं से फसल की सुरक्षा के लिए भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह त्योहार हर साल 12-15 मार्च को मनाया जाता है I

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें : 1.अरुणाचल का लोकजीवन (2003)-समीक्षा प्रकाशन, मुजफ्फरपुर 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य(2009)–राधा पब्लिकेशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 3.हिंदी सेवी संस्था कोश (2009)–स्वयं लेखक द्वारा प्रकाशित 4.राजभाषा विमर्श (2009)–नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय (2010)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा, विश्वभाषा (सं.2013)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत (2018, दूसरा संस्करण 2021)–हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ (2021)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली – 110002 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह-2020)–अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 17.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य(2021) अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य(2021)-मित्तल पब्लिकेशन, नई दिल्ली 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति(2021)-हंस प्रकाशन, नई दिल्ली मोबाइल-9868200085, ईमेल:- bkscgwb@gmail.com