सामाजिक

नागालैंड की आओ जनजाति

आओ नागालैंड की एक प्रमुख जनजाति है जिनकी अधिकांश आबादी मोकोकचुंग जिले में निवास करती है I मोकोकचुंग को इनका निवास जिला माना जाता है I ‘आओ’ शब्द की व्युत्पत्ति के संबंध में निश्चित रूप से कुछ कहना कठिन है I “किंवदंती है कि चुंगलीमीती में आदिवासी लोगों की जनसंख्या अधिक हो गई थी I वहाँ की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही थी I बढती आबादी के आवास के लिए भूमि की खोज होने लगी । उनमें से कुछ लोगों ने दिखु नदी पर बेंत के पुल का निर्माण किया और नदी के पश्चिमी किनारे पर अपनी बस्ती बसा ली I पुल को पार कर अपनी बस्ती बसा लेनेवाले लोगों के मन में यह भय उत्पन्न हो गया कि यदि सभी लोग इस पार आ जाएँगे तो पूरी आबादी के लिए पर्याप्त जमीन उपलब्ध नहीं होगी। यह सोचकर उन्होंने चालाकी से बेंत के पुल को काट दिया I परिणामतः आदिवासी लोगों का एक समूह नदी पार करने में असमर्थ हो गया। वेलोग नदी के उस पार ही रह गए I जिन लोगों ने दिखु नदी को पार किया था उन्हें ‘आओर’ या ‘आओ’ के नाम से जानते हैं जिसका अर्थ ‘जानेवाले’ या ‘गए’ है और जो पीछे रह गए थे उन्हें ‘मेरिर’ कहा गया जिसका अर्थ ‘छुट जानेवाले” या ‘पीछे रह जानेवाले’ है।“(श्रीमती डब्लू. जमीर – द आओज ऑफ़ नागालैंड) नागालैंड के अतिरिक्त असम के जोरहाट जिले में भी कुछ आओ परिवार बसे हुए हैं I इनके पड़ोस में सेमा और लोथा जनजातियाँ निवास करती हैं I भूमि और जंगल आओ समाज के प्रमुख आर्थिक संसाधन हैं I ये लोग झूम खेती करते हैं I घाटी में जहाँ समतल जमीन है वहाँ स्थायी खेती भी की जाती है I आओ समुदाय में चार प्रकार की जमीन पाई जाती है – निजी जमीन, गोत्र की जमीन, मोरंग की जमीन और गाँव की सामान्य जमीन I निजी जमीन बहुत कम होती है I आओ परंपरा के अनुसार यदि किसी अपराध के कारण किसी व्यक्ति पर जुर्माना लगाया जाता है और वह जुर्माने का भुगतान नहीं कर पाता है तो उसके गोत्र के लोग उसका भुगतान करते हैं I यदि कोई व्यक्ति बिना वसीयत के मर जाता है तो उसकी निजी जमीन भी गोत्र की जमीन हो जाती है I मोरंग भूमि पर गृह निर्माण के लिए पेड़ और बाँस लगाए जाते हैं I गाँव की सामान्य जमीन खेती योग्य नहीं होती है और उसमें जंगल होता है I झूम कृषि के लिए भूमि का आबंटन होने के बावजूद किसी भी परिवार का हमेशा के लिए उस भूमि पर अधिकार नहीं होता I चावल इस समुदाय की मुख्य फसल है I चावल के अतिरिक्त वे लोग मक्का, आलू, अदरख और अन्य हरी सब्जियों की भी खेती करते हैं I वे लोग संतरा, निम्बू, केला, अन्नानास आदि फलों का भी उत्पादन करते हैं I कुछ क्षेत्रों में पानीखेती भी की जाती है I आजकल कुछ किसान चाय, कॉफी, पान पत्ता आदि नकदी फसलों की भी खेती कर रहे हैं I येलोग कुशल शिकारी होते हैं और जंगल में अपने तीर – धनुष से जंगली पशु – पक्षियों का शिकार करते हैं I महिलाएं कपड़ों की बुनाई में दक्ष होती हैं I वे रंगबिरंगे कपड़े बुनती हैं I काष्ठशिल्प, लोहाड़ी और बढईगिरी में लुसेई पुरुष कुशल होते हैं I वेलोग टोकरी बनाने में भी कुशल होते हैं I पशुपालन भी आओ समुदाय की आजीविका का एक प्रमुख साधन है I वे सूअर, गाय, बकरी, खरगोश आदि पालते हैंI
आओ समाज में अधिकांश प्रेम विवाह होते हैं I लड़के – लड़कियों का आपस में मिलना – जुलना सामान्य बात है I वे अपने जीवन साथी का चुनाव कर लेते हैं, बाद में अपने माता – पिता से औपचारिक विवाह की अनुमति प्राप्त करते हैं I कुछ विवाह बातचीत से भी तय होते हैं लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है I पहले अन्य जनजातियों की तरह आओ समुदाय में भी वधू मूल्य की परंपरा थी लेकिन ईसाईकरण के उपरांत सभी पुरानी वैवाहिक परम्पराएं और संस्कार समाप्त हो गए हैं I अब विवाह ईसाई रीति – रिवाज से गिरजाघर में होते हैं I आओ समुदाय ईसाई धर्म को अंगीकार करने वाली प्रथम नागा जनजाति था I इस समुदाय ने ईसाई धर्म के साथ पश्चिमी शिक्षा को भी अपनाया और इस कारण वे प्रत्येक क्षेत्र मे अग्रणी बन गए । वर्ष 1872 में एक अमेरिकी बैपटिस्ट मिशनरी एडविन डब्लू क्लार्क ने सर्वप्रथम आओ क्षेत्र में प्रवेश किया I इसके बाद ईसाई धर्म का आओ समुदाय मे प्रसार हुआ । शत – प्रतिशत आओ ने ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया है जिनमें से अधिकांश बैपटिस्ट हैं I इस समुदाय के अनेक लोग मिशनरी के काम मेँ भी लगे हैं । मोअत्सू आओ समुदाय का एक प्रमुख त्योहार है I यह हर साल मई के पहले सप्ताह में मनाया जाता है। पर्व के दौरान अनेक अनुष्ठान किए जाते हैं I धान की बुआई करने के बाद आओ लोग उत्सवपूर्वक यह त्योहार मनाते हैं I झूम खेती के लिए जंगल साफ़ करने और उसमे आग लगाने, कुओं एवं मकानों की सफाई व मरम्मत करने के उपरांत यह त्योहार मनाया जाता है । गीत और नृत्य मोआत्सु उत्सव के अविभाज्य अंग हैं I यह त्योहार 1 से 3 मई के बीच पूरे जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है I इस त्यौहार के दौरान एक प्रतीकात्मक समारोह होता है जिसमे एक बड़ी अंगीठी जलाई जाती है जिसके चारों ओर पुरुष और महिलाएं बैठते हैं I सभी अपने पारंपरिक परिधान और गुड़ियों की माला धारण किए होते हैं I महिलाएं पुरुषों को चावल से बनी मदिरा और मांस परोसती हैं। जो पुरुष अधिक लोकप्रिय होते हैं उनको अधिक महिलाएं मदिरा और मांस परोसती हैं I त्योहार के दौरान सर्वश्रेष्ठ मदिरा बनाने और सर्वोत्तम सूअरों और गायों की बलि देने के लिए प्रतिस्पर्धा होती है । महिलाएं और लडकियां अच्छे पारंपरिक वस्त्रों की बुनाई करती हैं और खुद को सजाती- संवारती हैं । वे नृत्य- संगीत, खान- पान और युद्ध गीत तैयार करने में पुरुषों का साथ देती हैं I वे अपने प्रेमी के लिए प्रेम गीत गाती हैं और गाँव के बुजुर्ग पुरुष युवाओं को प्रेम करने व प्रेम का इजहार करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं I युद्ध नृत्य और युद्ध गीत इस त्योहार का अभिन्न अंग है I “सूंग्रेम मोंग” आओ समुदाय का एक अन्य महत्वपूर्ण त्योहार है I यह भी फसल से संबंधित त्योहार है I यह त्योहार 1 -3 अगस्त को मनाते हैं। इस उत्सव की शुरुआत से पहले सूंगकूम (गांव का गेट) को बंद कर दिया जाता है और गाँव के बाहरी लोगों के लिए प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया जाता है I बुजुर्ग और युवा रंगीन वेशभूषा पहनकर गीत गाते और नृत्य करते हैं तथा अच्छी फसल प्रदान करने के लिए सर्वोच्च शक्ति को अपना आभार व्यक्त करते हैं। वे अच्छी फसल और आरोग्य की कामना करते हैं तथा सर्वोच्च शक्ति को चढ़ावा चढाते हैं I यह त्योहार नई पीढी को अपने बल और कला- कौशल का प्रदर्शन करने का अवसर प्रदान करता है ।

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें : 1.अरुणाचल का लोकजीवन (2003)-समीक्षा प्रकाशन, मुजफ्फरपुर 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य(2009)–राधा पब्लिकेशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 3.हिंदी सेवी संस्था कोश (2009)–स्वयं लेखक द्वारा प्रकाशित 4.राजभाषा विमर्श (2009)–नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय (2010)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा, विश्वभाषा (सं.2013)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत (2018, दूसरा संस्करण 2021)–हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ (2021)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली – 110002 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह-2020)–अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 17.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य(2021) अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य(2021)-मित्तल पब्लिकेशन, नई दिल्ली 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति(2021)-हंस प्रकाशन, नई दिल्ली मोबाइल-9868200085, ईमेल:- bkscgwb@gmail.com