लघुकथा

पीड़ा

रेडियो पर 23 दिसंबर को भारत में ‘राष्ट्रीय किसान दिवस’ के रूप में मनाये जाने के समाचार ने खेतों में ख़ून पसीना बहाने वाले किसान अलबेला राम के अलबेले अतीत को झकझोर दिया.

”कितना मजा आता था बचपन में खेतों में जाने, गन्ना उखाड़कर खाने, दोस्तों के साथ मस्ती करने में!” अलबेला राम के अलबेले बचपन की ये अलबेली बातें थीं.

”तब बापू कितना कहते थे- ‘कुछ कर ले बेटा’, ‘कुछ सीख ले बेटा’, लेकिन अपना अलबेलापन मुझे कुछ सीखने देता तब न!” उसकी सोच में तनिक गंभीरता आने लगी थी.

”मुझे क्या पता था, रात को खेतों में सोने को मजबूर बापू सर्दी के भीषण कहर को नहीं झेल पाएंगे और इतनी जल्दी दुनिया से कूच कर जाएंगे!” उसकी परिपक्वता बोल रही थी.

”कभी सर्दी का कहर, कभी गर्मी का प्रकोप, कभी अतिवृष्टि और ओलों का अनिष्टकारी संहार, कभी अनावृष्टि और सूखे की मार, यही तो बनती है दुनिया के अन्नदाता के किस्मत की खेवनहार!” बह निकली थी अलबेला राम की अश्रु की धार.

”सब सोचते हैं- ‘यह तो खुद ही अन्नदाता है, इसका पेट तो हरदम अन्न को देखकर ही भरा रहता होगा.’ उन्हें क्या पता महीनों पेट पर पट्टी बांधे सोने की पीड़ा क्या होती है.”

”किसानों के लिए अनेक लाभकारी योजनाएं चालू की जाएंगी, उनका ऋण माफ कर दिया जाएगा, सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे आदि-आदि—-” कहकर रेडियो ने अलबेला राम की पीड़ा को तनिक गहराते हुए अनेक मनभावन खोखले वादों के साथ समाचार समाप्त कर दिए थे.

चलते-चलते
यह लघुकथा पिछले साल 23 दिसंबर को लिखी गई थी. इसमें वर्णित किसानों की विसंगतियों को लघुकथा मंच पर बहुत सराहा गया था. किसान को अन्नदाता मानकर यह समझा जाता है, कि उसे तो अन्न की कमी ही नहीं होती होगी, पर उसके अपने घर अन्न का एक दाना भी पहुंच पाता है, कि नहीं इसकी असलियत को जानना बहुत मुश्किल है. प्रस्तुत है इसी पीड़ा को मुखर करती हुई लघुकथा.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “पीड़ा

  • लीला तिवानी

    दिसम्बर की २३ तारीख सन १९२६ को महर्षि दयानंद सरस्वती के अनन्य भक्त, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के संस्थापक स्वामी श्रद्धानन्द जी महाराज ने भी देश धर्म की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व अर्पण कर बलिदान दिया था, उन्होँने मुसलमानों द्वारा जबरन, छ्ल कपट से बनाए गए अपने हजारों-हजार हिन्दुओं को शुद्ध कर वापस अपने ही कुल में घर वापसी का एक साहसिक कार्य किया था ! उन्होँने जाती पाति, छूआ छुत, शिक्षा, वेद के पठन-पाठन, देश की एकता, अखंडता, समाज सुधार व मानव कल्याण के लिए अपना परिवार, धन सम्पत्ति देश सेवा में समर्पित कर दिया था। आज उस त्यागी, तपस्वी, महापुरुष का बलिदान दिवस है, एक धर्मान्ध क्रूर कट्टरपंथि मुसलिम युवक ने आज के दिन उनको गोली मार दी थी ! देश धर्म की रक्षा पर बलिदान देने वाले अमर शहीद स्वामी श्रद्धानंद जी महाराज को उनकी पुण्य तिथि पर उनके असंख्य उपकारों को समरण करते शत शत नमन व प्रणाम ।

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