कविता

वही लिखती है कलम जो लिखवाया जाता है

कलम अब बूढ़ी हो गई है

न कलम में अब वो ताकत है

झुक गए वो सर जो अकड़ के चलते थे
समय की यही तो नज़ाकत है

कलम अब अपने मन की नहीं लिखती
वही लिखती है जो लिखवाया जाता है
हकीकत में वो सब नहीं है होता
जो वास्तव में दिखाया जाता है
बोल दे कोई खुल कर उनके खिलाफ
देशद्रोही ठहराया जाता है
अन्न पैदा करने वालों की कोई नहीं सुनता
जिनका पैदा किया अन्न रोज़ खाया जाता है
तुम कौन सा दूध के धुले हो
पाप सब यहां करते हैं
कुछ मुंह पर कह देते हैं
कुछ कहने से डरते हैं
हम तो वाह वाह करते रहे
आपकी सादगी पर हम मरते थे
उन्हीं को साथ मिला लिया आपने
जिनसे हम आपके लिए झगड़ते थे
मन की बात बहुत कह लेते हो
दूसरों के मन की बात नहीं सुनते हो
काम करवा कर लात मारते हो
दूसरों को गिराने के ताने बाने बुनते हो
आखिर कब तक बकरे की मां खैर मनाएगी
एक न एक दिन तो उसकी भी बारी आएगी
दूर बैठ कर तब तमाशा देखेंगे लोग
जब घर में तुम्हारे आग लग जायेगी
 
— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र