5 मई यानी कार्ल मार्क्स जयंती
सत्यश:, देश, समाज, संस्था और कल-कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों की अहम भूमिका होती है। मजदूरों के बगैर औद्योगिक इकाइयों के खड़े होने की कल्पना नहीं की जा सकती, इसलिए श्रमिकों का समाज में अपना ही एक महत्व है।
अगर भारत में कहीं भी बंधुआ मजदूरी कराई जाती है तो यह प्रत्यक्षत: बंधुआ मजदूरी प्रणाली उन्मूलन अधिनियम 1976 का उल्लंघन होगा। कोरोनाकाल में पड़े पहले श्रमशक्ति दिवस पर भारत सरकार ने श्रमिकों की कद्र की है और उन्हें सम्मानपूर्वक ट्रेन से घर भेजा है।
केंद्र और राज्य सरकार ने मजदूरों व श्रमिकों की घर वापसी कराकर महत्वपूर्ण कार्य कराए हैं, किन्तु उन्हें सीधे घर न भेजकर क्वारंटाइन होम में रखने चाहिए। बिहार के कटिहार, भागलपुर क्षेत्र में कई श्रमिक और विद्यार्थी सीधे घर घुस रहे हैं।
कार्ल मार्क्स की जयंती और श्रमिकों की कितनी कद्र ? कद्र तो होनी ही चाहिए। जन्मभूमि जर्मनी में कार्ल मार्क्स की कद्र नहीं होती, किन्तु हमें कद्र है। मैं मनुवाद या किसी तरह के सवर्णवाद का पक्षधर नहीं हूँ, अपितु भारतीय सुसंस्कृति के कायल हूँ ! उनकी जयंती यानी 5 मई के सुुुुुुुअवसर पर इस महापुरुष को सादर नमन और विनम्र श्रद्धांजलि !