गीतिका/ग़ज़ल

चलें

शाम होने लगी तो आओ अब घर चलें
इधर न जी लगे हमारा चलो उधर चलें
तलाश थी हमें कोई साथ देने वाला हो
मिले हो अब तो साथ हमसफ़र चलें
सताए हैं गए ज़माने भर की बातों से
थाम लो हाथ छोड़ कर फ़िकर चलें
ये शहर तो हमें कुछ रास ही नहीं आया
समेट लो जज़्बात कि नए शहर चलें
रुकने से “गीत” सांसें ही रुक जाएँगी
चलना है ज़िन्दगी शाम-ओ-सहर चलें
— प्रियंका अग्निहोत्री “गीत”

प्रियंका अग्निहोत्री 'गीत'

पुत्री श्रीमती पुष्पा अवस्थी