हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – फलता फूलता कोरोना व्यवसाय

आपदा में भी अवसर की तलाश करते रहना चाहिए। एक ओर कोरोना की दूसरी लहर ने भयंकर उत्पात मचा रखा है वहीं कुछ लोगों के लिए सुनहरा अवसर भी प्रदान किया है। आजकल कोरोना व्यवसाय काफी फल-फूल रहा है। जब टीवी वाले कोरोना बेच सकते हैं तो अस्पताल वाले क्यों नहीं ! वैसे भी कोरोना पर तो अस्पताल का ही क्षेत्राधिकार है। टीवी वाले तो हरदम कुछ न कुछ बेचते ही रहते हैं। कभी मंदिर-मस्जिद बेच दिया तो कभी मजदूरों की मजबूरी बेची, कभी धर्म तो कभी ईमान।  राजनीति तो लगभग रोज ही बेेेेचते हैं। अस्पताल वालों ने तो कभी टीवी वालों के व्यापार में टांग नहीं अड़ाया।  शुरू-शुरू में तो लगा था कि टीवी वाले अपने डिबेट कार्यक्रमों में ही कोरोना का कचूमर निकाल देंगे। चीन के सामानों की सबसे खास बात होती है कि वे क्षणभंगुर होते है लेकिन पता नहीं इस बार कमबख्त चीन ने कैसा वायरस बना दिया कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है।
आजकल कोई सामान्य रोगों का मरीज यदि भूलवश प्राइवेट अस्पतालों में पहुंच जाए तब उससे यही कहा जाएगा- “माफ़ कीजिए, हम आपको एडमिट नहीं कर सकते। आपको पता नहीं, अभी कोरोना का सीजन चल रहा है। अभी हम सिर्फ कोरोना बेच रहे हैं यानी कोरोना संक्रमित लोगों का ही इलाज कर रहे हैं।”
यह जानकर पेशेंट को बड़ी खुशी होगी कि हमारा देश भी विकसित देशों की श्रेणी में आ गया है, जहां अस्पतालों में कोरोना का इलाज तो हो रहा है।
“वाह, यह तो बड़ी अच्छी बात है कि कोरोना का इलाज हो रहा है।”
“अजी इलाज कहां, जब अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, ब्राजील और इटली जैसे देश इलाज नहीं कर पा रहे हैं, तो हम कहां से करेंगे। हम तो कोरोना को भुना रहे हैं। सालों बाद तो इस तरह का मौका आता है जब हम अस्पताल वालों को अंधा पैसा कमाने का मौका मिलता है।”
इन अस्पताल वालों ने तो पूरा पैकेज ही बना डाला..वो बीस लाख करोड़ वाला पैकेज नहीं।
साधारण वार्ड का पांच लाख, प्राइवेट नाॅन एसी वार्ड सात लाख और एसी वार्ड दस लाख, वेंटिलेटर के साथ पंद्रह लाख…. यानी जैसी सुविधा चाहेंगे वैसा पैकेज चुनना होगा। यह और बात है कि इन अस्पतालों में इलाज छोड़कर सारी सुविधाएं मिल जाएंगी मगर ठीक होने की गारंटी नहीं। यह तो मरीज पर निर्भर करता है कि उसकी इम्युनिटी कैसी है। रिकवरी रेट बढ़ने और डेथ रेट घटने का श्रेय हमारे शरीर में इम्युनिटी बढ़ने को जाना चाहिए।
जब टीवी चैनल वाले कोरोना खत्म नहीं कर सके और अस्पतालों के‌ पास तो सटीक दवा और पर्याप्त संसाधन भी उपलब्ध नहीं, जिससे वे कारगर इलाज कर सकें। ऐसे में भरोसा सिर्फ वैज्ञानिकों पर ही रह जाता है, जिन्होंने दिन-रात एक कर बहुत मेहनत से टीका बनाया है। हमारी कामना है कि हमारे वैज्ञानिकों द्वारा बनाया गया टीका इस ख़तरनाक वायरस से लड़ने में पूरी तरह कारगर हो और इस वैश्विक महामारी पर नियंत्रण लगे ताकि संभावित तीसरी लहर को रोका जा सके।

— विनोद प्रसाद

विनोद प्रसाद

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