कविता

मां की आत्मा

एक मां की दर्द भरी कहानी,
कभी मेरी भी आँखों का
तारा जगमगाया था मेरा बेटा
मुझसे मिलने को आया था।
ख्वाब सजाए थे अनगिनत मैंने,
मेरे सोच पर तूने पानी फेरा था ,
क्या पता था अपने
ही आँखों का तारा
आग का शोला बन जाएगा ,
अपने को ही अपनेपन का
एहसास नहीं रह पाएगा ,
छोड़ मुझे ‘वृद्धाश्रम
अकेला ही चला जाएगा ।
आँखें पथरा गई थी
देखने को तुझे, सोचती थी,
एक ऐसा सवेरा आएगा ,
‘ मेरा लाल मुझे ले जाएगा ‘।
दिन से रात हुई ,महीनों से साल ,
दस वर्ष होने को आया ,
एक दिन बुढ़ी माँ को
ताप- तप्त मैंने पाया ,
अन्तिम सांँसे चल रही थी ,
आशा की जोत न बुझ पाई थी ,
टकटकी लगाए दरवाजे को ,
जाने किस सोच में तक रही थी ,
यमराज ने दरवाजा खटखटाया ,
यह देख कर उसका
भी दिल भर आया ,
आँखों में अधूरे
ख्वाब लिए विदा हो गई ,
जैसे ही अन्तिम
विदाई का समय आया ।
दौड़ता हुआ वत्स
बदहवास सा लौट आया,
पर माँ  से मिल न पाया था,
पूत कपूत हो चुका था ,
पर माँ का मन नहीं माना था,
मरते समय माँ  ने एक खत और
नोट दुआओं से
भरा लिखवाया था ।
और उसे अपने
सिरहाने पर रखवाया था।
अभागा पुत्र अफसोस
और पछतावा में बैठा,
तभी एक चमत्कार सा हुआ ,
एक शीतल स्पर्श
अपने सर पर पाया,
मूड़कर देखा तो कोई और नहीं,
ममता का ही छाया था ,
मेरे लाल तू देर से क्यों आया था?
मुझे शांति नहीं मिल रही थी वत्स ,
तभी यमराज ने ही तुझसे
मिलवाने का बीड़ा उठाया था ।
अब सो सकती हूंँ मैं चिर निंद्रा में ,
मेरा मन और तन
तुझसे ही मिलने आया था ,
खुश रहे ,आबाद रहे ,
जहाँ रहे खुशहाल रहे ,
यही दुआ करती हूॅ कि ‘
तेरा बेटा तेरे पास रहे ‘।
विचलित हो यह सुन
आँसू न रोक पाया था ।

ज्योति अम्बस्ट

ज्योति अम्बस्ट

वरिष्ठ गीतकार कवयित्री व स्वतन्त्र लेखिका, अंबिकापुर-छत्तीसगढ़