लघुकथा

संतुलन

समुद्र का किनारा था,
क्या ही सुंदर नजारा था!
पेड़ पर तोता, पानी में मीन थी,
दोनों की दोस्ती का आलम बड़ा प्यारा था.
”नमस्ते गोल्डन फिश.” पेड़ से तोता बोला
”नमस्ते भाई नमस्ते, क्या हाल हैं?”
”ठीक हैं, आम खाओगी?”
”रोज तो खिलाते हो, आज पूछ क्यों रहे हो?”
”अब मैंने सुन लिया है, कि बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है.”
”सुनी हुई सारी बातें शत प्रतिशत सही नहीं होती हैं, फिर अपवाद भी तो होते ही हैं न! देखो मैं छोटी मछली को भी साथ लाई हूं. तुम मुझे आम-अमरूद खिलाकर मेरा पेट भर देते हो, फिर मैं मछलियों को क्यों खाऊंगी?”
”इसका मतलब खाली पेट वाली भूखी बड़ी मछलियां ही छोटी मछलियों को खा जाती हैं!” तोता आश्चर्य चकित था.
”इसका उत्तर तो मैं बाद में दूंगी, पहले यह बताओ कि ऑस्ट्रेलिया में 10,000 जंगली ऊंटों को मारने का आदेश क्यों दिया गया?” मछली चिंतित-सी लग रही थी.
”वो तो इसलिए कि वो एक साल में एक टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर मीथेन का उत्सर्जन करते हैं. इस प्रकार ये जानवर ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा रहे हैं. दक्षिण ऑस्ट्रेलिया में हेलीकॉप्टर से कुछ प्रोफेशनल शूटर्स ने 10,000 से ज्यादा जंगली ऊंटों को मार गिराया.”
”और भी जो कुछ जानते हो, बताओ दोस्त!”
”चमड़ा उद्योग को तो दुनियाभर में जानवरों के क्रूर परिवहन एवं दर्दनाक मौतों का उद्योग कहा जाता है. ”
”अच्छा!” गोल्डन फिश हैरान थी.
”कुछ जानवर तो अपने बच्चों तक को भी मार डालते हैं.” तोते का ज्ञान मुखर था.
”ऐसा कैसे हो सकता है भला?” गोल्डन फिश की हैरानगी चरम पर थी.
”सच्ची बात है. 289 स्तनधारी प्रजातियों के नये सर्वे में क़रीब एक तिहाई प्रजातियों में शिशु-हत्या के सबूत मिले हैं.”
”हे राम!”
”लंगूरों और बंदरों को तो तुम जानती हो न! उनमें भी ऐसा देखा गया है.” यह तोता है या विकिपीडिया! पता नहीं क्या-क्या बताएगा!
”दक्षिण अमरीका में पेड़ों पर रहने वाले अफ्रीकी बंदरों (मर्मोसेट) में ऐसा स्पष्ट देखा गया है.”
”और कितना बताओगे?”
”बड़ी चालाक हो गोल्डन फिश रानी! बातों में फंसाकर मुझसे इतना कुछ उगलवा दिया, अपनी बात तो बताओ न!” तोते ने उसे बोलने का अवसर दिया था.
”मैंने तो यह भी सुना है, कि आदमी आदमी को खाता है.” गोल्डन फिश ने बचने का यत्न किया.
”वो सब छोड़ो, अपनी बात कहो.” तोता अवसर को हाथ से न जाने देने को तत्पर था.”
”वही बता रही हूं, पर पहले कोरोना की बात सुनो.”
”कोरोना! वो क्या होता है?”
”भाई, यह एक नई महामारी है, जिसके कारण हर देश में लाखों लोग रोज मरते हैं, जानते हो क्यों?”
”नहीं!” अबकी बार तोते के हैरान होने की बारी थी.
”और ये जो बाढ़ें आती हैं, उनमें भी बहुत-से लोग बह जाते हैं, यह तो सुना होगा!”
”अपनी आंखों के सामने ऐसा होता हुआ देखा भी है.”
”कारण पता है! जनसंख्या बढ़ती जा रही है, संसाधन घटते जा रहे हैं, लोग पर्यावरण के प्रति लापरवाह होते जा रहे हैं.”
”उससे क्या लोग मर जाते हैं?
”यह प्रकृति का संतुलन का तरीका है.”
”इधर-उधर की बात मत करो, अपनी बात बताओ.”
”हम भी संतुलन के लिए ही ऐसा करती हैं.” और गोल्डन फिश ने पानी में छलांग लगा दी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244