कविता

अज्ञान ही अंधकार

ये सब बेकार की बातें हैं
ऐसी बातों में जंग लग गई है
सिर्फ कहावतें रह गई हैं।
दुनिया कहां से कहां पहुंच गई है
अंधकार कोसों दूर भाग रही है,
सारी दुनियां चमक में खो गई है।
हमें अज्ञानता का अंधकार कहां दिखता है
तभी तो हमारा वोट
अज्ञानता की बलि चढ़ता है।
हमें तो अंधेरे की आदत हो गई है
अनपढ़ों, कम पढ़े लिखों
अपराधियों, बेलगाम, बेशर्म नेताओ को
जाति, धर्म और निजी स्वार्थ वश
चुनने की आदत जो पड़ गई है।
जिन्हें उठने बैठने की तमीज तक नहीं है
उनके हाथों में अपने ही नहीं
देश का भविष्य भी सौंपने में
न हिचक हो रही है।
योग्य ईमानदार को बेइज्जत करने की
हमनें कसम खा ली है,
जो योग्य ईमानदार हमारी
गलती सेचुनकर आए भी जाते हैं
वो भी लाचार बने रहते हैं,
अयोग्य सत्ता के मद में चूर मलाई काटते हैं
आई ए एस, आई पी एस बेचारे
पीछे पीछे लाचार बने फिरते हैं,
हाथ बांधे खड़े रहते हैं
लाख योग्यताओं के बाद भी
गलत नीतियों, विचारों, सुझावों को
विरोध कर पाना तो दूर
कुछ कह तक नहीं सकते,
बस यह सर, यह सर कहते सिर हिलाते हैं
अज्ञानियों के चक्रव्यूह में जैसे तैसे
अपना कर्तव्य निभाते हैं,
अज्ञानता अंधकार कहाँ है?
यही सोचते रह जाते हैं,
हाथ मलते और पछताते हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921