कविता

लोग मिलते हैं

लोग मिलते हैं
मिलते ही रहते है
यह मिलने-जुलने की परंपरा
जीवन-पर्यन्त चलता ही रहता है
बस मिलने वालों के समय-समय पर
चेहरे बदलते रहते हैं

कुछ तो मिलकर कहीं खो जाते हैं
कभी मुलाकात नहीं होती दुबारा
यूँ कह लें यह मुलाकात भीड़ जैसी है

पर होते हैं कुछ लोग
एकांत और
शांत झील की तरह
जिनसे मिलना और मिलकर
यादों में बसा लेना
दिल को सुकून देता है

कोशिशें करता है मन
उनसे बार-बार मिलने की
प्रकृति द्वारा निर्धारित ये लगाव
दिल में एहसासों को सिंचित करता है

और सच माने तो !
इस आत्मीय रिश्ते में हर कोई
बंधा होता है किसी न किसी से
और जीता है ताउम्र
भीनी-भीनी मुस्कुराहटों के साथ।

*बबली सिन्हा

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