राजनीति

वैभव पुनर्स्थापना की प्रतीक्षा में धार की “भोजशाला”

इस्लामिक आक्रमणकारियों से लड़ने का श्रेय केवल राम जन्मभूमि अयोध्या या कृष्ण जन्मभूमि मथुरा, प्रभु विश्वनाथ की धरा काशी को ही नहीं जाता । वरन मध्य प्रदेश की धार नगरी की भोजशाला को भी जाता है । काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी के तात्कालिक विषय के चलते भोजशाला की याचिका भी इंदौर हाईकोर्ट में स्वीकार कर ली गई है। इस याचिका में भोजशाला का सर्वे करवाये जाने, हिन्दूओ को भौजशाला का अधिकार सौंपे जाने, नमाज पर प्रतिबंध लगाने और सरस्वती मां की प्रतिमा स्थापित करने का आग्रह किया गया है।
राजा भोज की तपोभूमि मालवा क्षेत्र रहा। राजा भोज मां सरस्वती के बहुत बड़े उपासक थे, उन्हें मां वाग्देवी ने कई बार दर्शन दिए। राजा भोज को जिस स्थान पर मां सरस्वती के दर्शन हुए उसी स्थान पर उन्होंने भोजशाला का निर्माण किया। राजा भोज का शासनकाल 10 वीं शताब्दी के समय में रहा। मां सरस्वती के मंदिर के भव्य निर्माण में जिस वाग्दवी मां सरस्वती का दर्शन किया था उन्हीं की मूर्ति उस भोजशाला में स्थापित की, इस मूर्ति का निर्माण प्रसिद्ध मूर्तिकार मन्थल द्वारा किया गया सरस्वती माता की शांत मुद्रारा में वाग्देवी स्वरूप की है प्रतिमा अत्यंत रोचक व मनमोहक थी।
इसके साथ ही उन्होंने विद्या के प्रसार के के लिए भोजशाला को संस्कृत का एक बड़ा विश्वविद्यालय बनाया जिसमें 400 से अधिक वेद पाठी शिक्षक सहस्त्रों विद्यार्थियों को दर्शन राजनीति, अध्यात्म, आयुर्वेद, चिकित्सा, व्याकरण, ज्योतिष, कला, नाट्य, संगीत, योग आदि विषयों का ज्ञान देते थे, इसके अतिरिक्त इस विद्यालय में वायु यान,जलयान,चित्रक शास्त्र, स्वयंचलित यंत्र आदि के विषय में भी शोध व प्रयोग किए गए। एक सहस्त्र वर्ष पूर्व राजा भोज के किए हुए कार्य को भारतीय शासकों ने दूर लक्षित किया था किंतु आज भी विश्व से आश्चर्य भरी दृष्टि से देख रहा है इस विषय में संसार के 28 विश्वविद्यालयों में अध्ययन और उपयोग किए जा रहे हैं जिस समय पाश्चात्य संस्कृति जोध विज्ञान में बहुत पीछे थी उस समय धार की भोजशाला में विद्यार्थियों को भविष्य केंद्र विज्ञान में यंत्रों का ज्ञान दिया जाता था।
राजा भोज के पराक्रम व वीरता के कारण उनके राज्य पर किसी इस्लामिक शासक ने आक्रमण करने का साहस नहीं किया। परंतु उनकी मृत्यु के लगभग 200 वर्ष पश्चात मालवा राज्य पर इस्लामिक आक्रमण होने लगे। एक सूफी षड्यंत्रकारी जो स्वयं को संत बताता था, वह आकर धार नगरी में रहने लगा। वर्ष 1269 में मालवा में आए इस मौलाना ने यहां 36 वर्ष रहकर राज्य के सारे गुप्त मार्गों की जानकारी एकत्र की, तंत्र मंत्र जादू टोना आदि के माध्यम से इस्लाम का योजनाबद्ध प्रचार किया, उससे कई हिंदुओं को मुसलमान बनाया तथा राजकीय स्थितियों का अनुचित लाभ उठाते हुए अलाउद्दीन खिलजी को मालवा पर आक्रमण के लिए प्रेरित किया। अलाउद्दीन खिलजी ने सन 1305 में मालवा पर आक्रमण किया, इस आक्रमण को रोकने के लिए राजा महलक देव और उनके सेनापति गोगादेव जी जान से लड़े परंतु अलाउद्दीन खिलजी की विजय हुई। भोजशाला के आचार्य व विद्यार्थियों ने भी खिलजी की सेना का प्रतिकार किया किंतु बड़ी सेना के आगे ज्यादा समय तक टिक नहीं सके। खिलजी ने 1200 से अधिक विद्वानों को बंदी बनाकर उनके समक्ष इस्लाम स्वीकार करने का प्रस्ताव रखा। मुसलमान बनने से अधिक विद्वानों व विद्यार्थियों ने वीरगति को प्राप्त करना उचित समझा, इस बात से तिल मिलाकर अलाउद्दीन खिलजी ने उन सभी 1200  विद्वानों को काटकर भोजशाला के यज्ञ कुंड में फेंक दिया । कुछ ऐसे मुट्ठी भर लोग जो मृत्यु के भय से मुस्लिम बन गए उन्हें अलाउद्दीन खिलजी ने स्थानीय कार्य में लगा दिया। इसके पश्चात भोजशाला में स्थित वाग्देवी मां सरस्वती की मूर्ति को भी अंग बंद करके उस स्थान को पूर्ण रूप से इस्लामिक बनाने का षड्यंत्र किया। अलाउद्दीन खिलजी के बाद दिलावर खान गोरी फिर महमूद शाह खिलजी ने भी भोजशाला के अभिन्न चित्रों शिलालेखों मूर्तियों व वास्तु से कई बार छेड़छाड़ विध्वंस किया। ताकि भोजशाला के मंदिर के स्वरूप को ध्वस्त करके उसे एक इस्लामिक स्ट्रक्चर बताया जा सके। कमाल मौलाना की मृत्यु के 204 वर्ष बाद भौजशाला के बाहर ही अवैध रूप से कब्जा करके उसकी कब्र बना दी गई।  यह कब्र आज भी हिंदुओं के लिए सबसे बड़ी समस्या का कारण है इस कब्र के आधार पर भोजशाला जोकि सरस्वती माता का मंदिर और संस्कृत की पाठशाला थी उसे मस्जिद बताने का षड्यंत्र फैलाया गया जबकि वास्तविकता में कमाल मौलाना की मृत्यु के पश्चात उसे अहमदाबाद में दफनाया गया था। फिर उसकी कब्र का धार भोजशाला में होने का कोई औचित्य नहीं बनता। सत्यता के आधार को झुठला कर मुस्लिम जबरन भोजशाला पर अपना कब्जा बनाए हुए हैं।
सन 1875 में यहां पर खुदाई की गई थी इस खुदाई में सरस्वती देवी की प्रतिमा निकली, इस प्रतिमा को तत्कालीन मेजर किनकेयड नामक अंग्रेज अधिकारी लंदन ले गया । फिलहाल यह प्रतिमा लंदन के संग्रहालय में है। हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में इस प्रतिमा को लंदन से वापस लाकर भोजशाला में स्थापित करने की मांग भी रखी गई है।
 भारत की स्वतंत्रता के बाद सन 1997 में कांग्रेस के तत्कालीन सरकार में मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने एक अध्यादेश जारी किया जिसमें भोजशाला की सर्व प्रतिमाओं को हटाने का आदेश दिया गया साथ ही हिंदुओं का प्रवेश वर्जित कर दिया दिग्विजय सिंह का यह आदेश हिंदू विदेश से परिपूर्ण था उन्होंने यहां तक की भोजशाला को मंचित होने की मान्यता तक दे डाली जबकि भोजशाला के अस्तित्व की रक्षा के लिए कई हिंदू राजाओं और सैनिकों के बलिदान और वीरगति का अपमान करते हुए इसे मस्जिद कहने या बताने का अधिकार किस ने तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को दिया। भोजशाला के इतिहास को उसके लिए किए गए पराक्रम की जानकारी का एक पृष्ठ भी यदि उन्होंने पढ़ा होता तो वह भारत की इस गौरवशाली तपस्थली को मस्जिद बताने से पहले सौ बार सोचते। भोजशाला में हिंदुओं का आना जाना प्रतिबंधित किया पूजा अर्चना पर प्रतिबंध लगाया । कोर्ट में लगे वाद के आधार पर हिन्दूओ को वर्ष में एक बार दर्शन पूजन की अनुमति मिली। यहां तक कि वर्ष में 1 दिन होने वाली बसंत पंचमी पर भी प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई सन 2002 में भी भोजशाला में प्रवेश की अनुमति एक दिन रहती थी उस पर भी प्रतिबंध लगाकर कमाल मौलाना के जन्मदिन को निमित्त बताकर भोजशाला में नवाज कव्वाली का आयोजन करवाया गया तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 1:00 बजे तक ही हिंदू समाज को पूजा-अर्चना करने की अनुमति दी एक ढोलक एक ध्वज के साथ पूजा अर्चना करने के बाद दोपहर 2:00 बजे परिसर खाली करने के आदेश दिए गए हिंदुओं ने अपने अधिकारों का हनन कभी स्वीकार नहीं किया शासन प्रशासन के धर्मांध आदेशों के विरुद्ध सहस्त्रओ हिंदू एकजुट होकर भोजशाला में पूजा करने बैठ गए पुलिस ने परिसर खाली करने के लिए कई हिंदू युवाओं से मारपीट की महिलाओं के हाथों से थाली छीन कर फेंकी गई गालियां दी गई अपमान किया गया श्रद्धालुओं पर लाठी प्रहार भी हुआ इसके विरोध में हिंदू संगठनों ने भोजशाला में यज्ञ और सरस्वती दीदी भी की महाआरती की।  प्रत्येक वर्ष दमदारी से हिंदू समाज ने भोजशाला में पूजा अर्चन किया भोजशाला आंदोलन की तीव्रता धर्म संगम मैं एक लाख से अधिक हिंदुओं के एकत्रीकरण को देखकर तत्कालीन केंद्रीय पर्यटन संस्कृति मंत्री श्री जगमोहन ने भोजशाला को प्रतिबंध मुक्त करने के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा था परंतु तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने इस पत्र को कचरे के डब्बे में फेंक दिया भोजशाला को कमाल मौलाना की मस्जिद घोषित कर वहां पूजा करने वाले हिंदुओं को कारागृह में डाल दिया और जान से मारने की धमकी तक दी गई। शासन इतने तक भी नहीं रुका वह हिंदुओं का दमन आरंभ कर दिया गया जहां हिंदुओं पर इतने प्रतिबंध लगाए गए वहीं मुसलमानों को प्रति शुक्रवार नमाज पढ़ने का बंदोबस्त शासन प्रशासन द्वारा किया जाता था।
सन 2006 में सत्ता तो बदली परंतु भोजशाला की स्थिति में सुधार नही हुआ। सन 2006 में शुक्रवार को बसंत पंचमी आने पर बसंत पंचमी पर पूरे दिन पूजा अर्चन का अधिकार हिंदुओं का रहता था परंतु तत्कालीन सरकार ने मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए तथा अपने दल की धर्मनिरपेक्ष छवि बनाए रखने के लिए मुसलमानों को नमाज पढ़ने की अनुमति दी, कोर्ट के निर्देशों की अनुपालना के बहाने एक बार फिर हिन्दू अधिकारों का हनन हुआ। भाजपा नेताओं ने हिंदुओं को बहला-फुसलाकर भोजशाला खाली करवाई दूसरी ओर संत और उपस्थित हिंदू जो विरोध कर रहे थे उन पर लाठियां बरसा कर भगा दिया गया इस मारपीट में 74 से अधिक हिंदू युवा घायल हुए वह 164 से अधिक हिंदू युवाओं पर हत्या के प्रयास जैसे असत्य आरोप लगाकर अपराध पंजीबद्ध किया गया वही मुस्लिमों को पुलिस वाहन में बैठाकर नमाज पढ़ने के लिए हर प्रकार से सहायता की गई। संघ के कार्यकर्ता जो इस आंदोलन में प्राण पण से जुटे थे उनका हर प्रकार से दमन भाजपा शासन में भी नही रुका।
अब जबकि भारत के प्रमुख धर्म स्थलों को न्याय मिलना आरंभ हुआ है, धार की भोजशाला भी सदियों से अपने न्याय की प्रतीक्षा में है, मुस्लिमों के जबरन कब्जे और षड्यंत्रकारी कब्रों से आहत मां वाग्देवी का यह पवित्र धाम भी अपनी स्वतंत्रता को अपलक निहार रहा है। जन नायक भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिटेन सरकार से बात करके लंदन से मां वाग्देवी की प्रतिमा बुलवाकर भोजशाला में पूर्ण वैभव व सम्मान से स्थापित करें, यही करोडों हिन्दू जन की आस्था व इच्छा है।
— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश