कविता

यमराज से अनुबंध

आज सुबह से सातवीं बार बिना नंबर के यमराज नाम से काल आ चुकी है। अब तक तो मैं नजर अंदाज करता रहा , मगर जब फिर से काल आ गई तो मैं भी झुंझला गया और फोन रिसीव कर गुस्से में बोल गया – बोल रे यमराज! क्या तकलीफ़ है?
उधर से बड़े सलीके से जवाब मिला। नहीं मैं तो सिर्फ इसलिए फोन कर रहा था कि आपका सुबह ठीक ४ बजे का कन्फर्म टिकट है।तो आप अपना बैग तैयार कर लो। अपनी जरूरत का हर सामान याद करके रख लो।
मगर मैंने तो कोई टिकट लिया है, फिर वेटिंग या कंफर्म का सवाल कहाँ से आ गया?
इतना भोले न बनो बाबू । आपका ही नहीं हर प्राणी का टिकट माँ के गर्भ में आते ही वेटिंग हो जाता है।
यमराज ने बड़े प्यार से उत्तर दिया।
मगर मैं अभी यात्रा करने की स्थिति में ही नहीं हूं। ऐसा करो कि टिकट निरस्त कर दो। मैं भी मूड में आ गया।
वाह हहहहहहह क्या बात है बाबू। आप तो बड़े होशियार है, मगर निरस्तीकरण के लिए भी तो आपको चलना ही पड़ेगा। अब आपको तो पता है कि भगवान का कार्यालय अभी आनलाइन नहीं हो सका है। यमराज ने शर्माते हुए कहा
तो इसमें मैं क्या कर सकता हूं? मैंने लापरवाही से कहा
आपके नाम का ही तो इसका टेंडर हुआ है,बस आप वहां पहुंच कर जल्दी से काम शुरू कर दो। यमराज के स्वर में उत्सुकता के भाव थे।
वाह वाह, आप तो मुझे बेवकूफ समझते हो, जाकर अपने मालिक को बोलो- मेरी एक अदद शर्त है।मान्य हो तो आना, वरना टेंडर कैंसिल।
ऐसे कैसे टेंडर कैंसिल हो जाएगा। टेंडर की शर्तें पहले से निर्धारित हैं। आपको यात्रा तो करनी ही पड़ेगी अन्यथा वारंट लेकर आऊंगा।
जाओ यार! तुम जैसे रोज़ छत्तीस धरती के यमराज घूमते रहते हैं, वैसे भी तुम या तुम्हारे भगवान यहां मेरा बाल भी बांका नहीं कर सकते। मैं भी ताव खा गया।
यमराज थोड़ा नरम पड़ गया। जिद न करो प्रभु। मैं विवश हूं।
तो मैं ही कौन सा तुम्हारे स्वागत में खड़ा हूं। जाओ और जाकर भगवान से मेरी बात कराओ।
अरे यार! जो शर्त हो बोलो। मैं ही गारंटी दे देता हूं, मेरी गारंटी सर्वमान्य है। भगवान भी उसी पर हस्ताक्षर करते हैं।
तो सुनो! मैं फिर इस धरती पर नहीं आना चाहता। मंजूर है तो ठीक, वरना मैं चला होने। भूख लगी हो तो खाना खा लो और चलते बनो।
चलो खिला दो और सुनो तुम्हारी शर्त टेंडर में जुड़ जायेगी। लेकिन तुम्हें भी मेरी एक शर्त माननी होगी।
अब यार कथा मत सुनाओ। मुझे हर शर्त मान्य है, सिवाय धरती पर आने के। अब ऐसा करो कि खाना खाओ थोड़ा आराम कर लो। ताकि हम समय से निकल सकें। मैं किसी भी हाल में अपनी यात्रा नहीं छोड़ता।
सुबह मेरा शरीर बेजान पड़ा था और मैं ऊपर से धरती का तमाशा देख रहा था।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

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