कविता

प्रश्न चिन्ह

मिट्टी सरीखी जीवन का
कितना मान करें ऐ प्राणी
सांसों की डोर को कितना
खींच कर रखेगा अभिमानी
गुमान के शिखर पर बैठ
प्रभु की भक्ति क्या करेगा
जग के दाता भाग्यविधाता को
क्या अर्पण करेगा मूरख
अपने अंहकार में भूल कर गया
दाता को भिखारी समझ गया
सर्वशक्तिशाली को
निर्बल असहाय समझ गया
मनुष्य की अज्ञानता की
पराकाष्ठा तो देखिए
ईश्वर को अपने अंहकार का
भागीदार बना दिया
मनुष्य के शक्ति प्रदर्शन की होड़ ने
सर्वशक्तिशाली ईश्वर को
शक्तिहीन समझ बैठा
ईष्या द्वैष अंहकार तृष्णा
के भूलभूलैया में
मानवता को ही दफन कर दिया
इंसान ने अपने स्वार्थ के मद में
ईश्वर के अस्तित्व पर ही
प्रश्न चिन्ह लगा डाला।।
— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P