कविता

ईश्वर अल्लाह की आड़ में

ईश्वर अल्लाह तेरे नाम
तेरे नाम का नहीं काम,
तुम्हारे नाम पर हम
तुम्हारी आड़ में हम
नित नया बखेड़ा करते हैं।
पर हमारी बेशर्मी तो देखो
अपने आराध्य का ही
रोज नाम बदनाम करते हैं।
ईश्वर अल्लाह ईशु वाहे गुरु
नाम से करते हैं दिन शुरू
पर अंत होते होते दिन के
भूलते जाते न ईश्वर, न वाहे गुरू
नाटक हम रोज रोज करते हैं।
अब तो हमारे भगवान, अल्लाह भी
बड़ी दुविधा में सदा रहते हैं
सोचते सोचते खुद गुमराह होते हैं
ये भक्त हमारे कितने समझदार हैं
स्वार्थ का लड्डू फोड़ फोड़कर
हमको ही रोज बदनाम करते हैं।
लगता है बिन पेंदी का लोटा
भक्तों ने हमको बना दिया है,
अपने अपने हितों की खातिर
ईश्वर अल्लाह यानी हमको भी
बहुत बदनाम कर दिया है।
हम सब ही तो एक हैं
हमको तुम मानवों द्वारा
खांचों खाचों में बाँटा जा रहा है,
ईश्वर अल्लाह की आड़ में
रोज नया षड्यंत्र किया जा रहा है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921