कविता

तुम न आते…

तुम न आते तो अच्छा था
आ के इतने करीब मेरे
यूं चले न जाते तो अच्छा था

दिल में बसने से पहले
अरमानों के जगने से पहले
यादों में समाने से पहले
चले जाते तो अच्छा था

आहिस्ता आहिस्ता उतरते गए
सांसों में ऐसे मेरे पता ही न चला
होश खोने से पहले होश ही न रहा

मझधार में छोड़ देना तेरा
किनारे से ही चले जाते तो अच्छा था

लरजते अल्फ़ाज़ सिसकते जज़्बात
रोज ही टूटती रही मैं
खुद को ही कोसती रही
तुमसे नजदीकियां न बढ़ाती तो अच्छा था।

तूम न आते तो अच्छा था
आके इतने करीब मेरे
यूं चले न जाते तो अच्छा था

*बबली सिन्हा

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