राजनीति

गुजरात चुनाव और आप पार्टी

आज कल दिसंबर में आने वाले गुजरात चुनावों के बारे में देश में और मीडिया में बहुत चर्चा हैं।गुजरात में कांग्रेस की जगह पर आम आदमी पार्टी अपना कद बड़ा कर रही दिख रही हैं।वे खुल्ले आम बोल रहें हैं कि गुजरात में उनका कांग्रेस से नहीं बीजेपी से मुकाबला हैं।अब कांग्रेस के अस्तित्व को ही नकार रहें हैं।कांग्रेस की अपनी रैली में भी कुछ ऐसा ही नजर आ रहा हैं रैली का रूट ऐसा हैं जिसमे गुजरात को सिर्फ छूने भर को आते हैं।देश को जोड़ने निकली कांग्रेस का खुद का अस्तित्व कहां कहां बचा पाएगी ये उसके अंदर हो रहे विद्रोह और विग्रह को देख साफ समझ में आ रहा हैं।सब से बड़ा प्रकरण तो राजस्थान में अशोक गहलोत एपिसोड से विदित होता हैं। आला कमान की बात नहीं मान अपना राजकीय मंच पर स्थान बनाए रख सेंटर में जा कठपुतली बनने से अपने आप को बचाना था या  सचिन पायलट को मुख्य मंत्री पद से वंचित रखने का पूरा आयोजन था ये तो गहलोत ही जाने,किंतु इतना हाई वोल्टेज ड्रामा होने के बावजूद उन पर किसी भी प्रकार की शिक्षात्मक कार्यवाही का नहीं होना कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की मजबूरी ही दिख रही हैं।वरना दूसरे पक्ष में ऐसी बेअदबगी की कुछ न कुछ सजा जरूर मिलती।जो राष्ट्रीय स्तर पर हो रहा हैं उसका असर आने वाले चुनाव पर जरूर पड़ेगा। गुजरात में अपना पैर जमाने के लिए आप पार्टी एरिया के हिसाब से लीडरों को चयनित कर रही हैं और कुछ लोगों को खरीद करने की बातें भी सामने आ रही हैं।गुजरात में अपना पैर जमाने के लिए आप पार्टी को थोड़ी मुश्किल भी पड़ रहीं हैं जैसे रिक्शा चलाने वाले हितेश ने साफ बताया कि वह तो बीजेपी को मानता हैं। अरविंद जी को खाने पर तो उसके यूनियन के कहने पर बुलाया गया था।दूसरे हिंदू देवी देवताओं की पूजा नहीं करने की शपथ दिलाने वाले वीडियो का वायरल होने की वजह से और आप पार्टी की साख टूटती जा रही हैं।वैसे केजरीवाल का राजकरण में प्रवेश की कहानी भी बहुत रोचक हैं।उन्होंने अन्नाजी से दगा किया,राजकरण में नहीं आने की कसम खा कर भी राजकरण में प्रवेश किया।किरण बेदी,कुमार विश्वास जैसे कई मातबर लोगों को रास्ते से हटा अपने स्थान को मजबूत बनाने की कोशिश की हैं।वैसे भी अपना स्थान बचाने के लिए हर नेता दूसरे उभरते नेता को दूर कर अपने स्थान को मजबूत बनाते हैं लेकिन केजरीवाल अपना स्थान मजबूत करने के लिए पार्टी को कमजोर करते दिख रहें हैं।गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी का संगठन में फेरबदल करने का दांव उलटा पड़ गया हैं। आम आदमी पार्टी सूबे में अपनी सियासी जड़े जमाने के लिए अपने गुजरात सगंठन को भंग कर नए सिरे से गठित किया है, जिसे लेकर पार्टी में सियासी घमासन छिड़ गया हैं। ऐसे में विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में अंदरूनी कलह शुरू हो गई है, जो अरविंद केजरीवाल के सारे किए-धरे पर पानी फेर सकता है।
गुजरात में कांग्रेस का विकल्प बनने और बीजेपी से दो-दो हाथ करने के लिए नए तरीके से संगठन की घोषणा की हैं। ऐसे में आम आदमी पार्टी ने अपने गुजरात प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया को उनको अपने पद पर बरकरार रखा है तो वहीं इसुदान गढवी को पार्टी के नेशनल सेक्रेटरी का पोस्ट दिया गया। आम आदमी पार्टी ने गुजरात में अपने नए पदाधिकारियों में 850 जितने लोगों के साथ सगंठन ही पहली लिस्ट घोषित की थी। इसी के चलते पार्टी के कई नेता और कार्यकर्ता नाराज हैं और माना जा रहा है कि आने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव में पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
गुजरात में आम आदमी पार्टी के नए पदाधिकारियों की घोषणा के बाद पार्टी के नेताओं की नाराजगी पार्टी के अध्यक्ष गोपाल इटालिया और इसुदान गढवी से हैं। इसी के चलते तापी जिले के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष समेत सभी जिला सगंठन के लोगों ने अपना इस्तीफा दे दिया. इससे पहले पार्टी की महिला अध्यक्ष रीतु बंसल से पार्टी नाराज थी, जिन्हें गैर-गुजराती होने की बात को लेकर भी हंगामा मच चुका हैं।
आम आदमी पार्टी के नए संगठन में सूरत के लोगों को ज्यादा स्थान देने को लेकर ये हंगामा हुआ है, जिसे लेकर युवा नेता प्रविण राम भी आक्रोषित हैं। पार्टी के प्रदेश संगठन के 107 लोगों में से 33 लोग केवल सूरत के हैं. ऐसे में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं में ये भी चर्चा हे की कांग्रेस से आए हुए लोगों खास तवज्जे दी जा रही है. आरोप लग रहे हैं कि कांग्रेस से आए नेताओं को बड़े पद इसीलिए दिए गए हैं, क्योंकि वो पैसों में सौदे बाजी कर पाए।
गुजरात AAP के नेता ग्रुप छोड़ रहे हैं।
आम आदमी पार्टी के एक कार्यकर्ता का कहना है कि पार्टी के साथ गद्दारी करने वाले नेताओं को सगंठन में अहमित दी गई है, जो ऐसे नेता है जिन्होंने पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे और दोबारा से पार्टी में शामिल हुए हैं।ऐसे नेताओं को प्रदेश संगठन में स्थान दिए जाने के चलते सवाल खड़े हो रहे हैं. संगठन के पुराने नेता इतने नाराज है कि एक के बाद एक पार्टी के वाट्सएप ग्रुप छोड़ रहे हैं. पार्टी ग्रुप में भी वो लगातार अपनी नाराजगी को जाहिर कर रहे है।
बता दें कि गुजरात स्थानीय निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी के टिकट पर सूरत महानगर पालिका में 28 पार्षद चुने गए थे, जिसके बाद आम आदमी पार्टी में नई जान पड़ गई थी। इसके अलावा सूबे में कई जगहों पर आम आदमी पार्टी तहसील पंचायत और जिला पंचायत सीटें भी जीती थी। लेकिन, सूरत नगर निगम में 28 पार्षद सीटों की जीत ने अरविंद केजरीवाल से सूरत में रोड शो करवा दिया था।
सूरत की जीत के दम पर ही आम आदमी पार्टी गुजरात के आगामी विधानसभा चुनाव को जीतने सपने देख रही थी, लेकिन जिस तरह से अब आप ने नए पदाधिकारियों को चुना है. उसको लेकर पहले से पार्टी के साथ जुड़े कार्यकर्ताओं और नेताओं में असंतोष देखने को मिल रहा है। इतना ही नहीं पार्टी में अंदरूनी घमासान शुरू हो चुका है, जिसका खामियाजा गुजरात विधानसभा चुनाव में भी उठाना पड़ सकता है।गांधीनगर नगरपालिका की कुछ सीट जीतने से गुजरात नहीं जीता जायेगा ये बात पक्की हैं।
— जयश्री बिरमी

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।