लघुकथा

वृक्ष: जीवन के आधार

“बचाओ, बचाओ, बचाओ…” रिंकू चिल्लाने लगा.
“क्या हुआ बेटे?” मम्मी ने सोये हुए रिंकू को हिलाते हुए पूछा.
“कुछ नहीं!” ऐसा लगा मानो रिंकू को कुछ समझ ही नहीं आया!
“तो फिर चिल्लाए क्यों?”
“मैं चिल्लाया!” रिंकू हैरान था. “क्या बोल रहा था!”
“बचाओ, बचाओ, बचाओ…तुम कह रहे थे.” मम्मी ने याद दिलाया.
“अच्छा वो! वो तो पेड़ चिल्ला रहा था, हमें बचाओ. ये लोग मुझे और मेरे साथियों को काटकर फर्नीचर बनाएंगे और ईंधन बनाकर जलाएंगे!” रिंकू उदास-सा लग रहा था.
“और पता है मम्मी! चिड़ियाएं चिल्ला रही थीं. पेड़ कटेंगे तो हम कहां रहेंगी? हम तो पेड़ पर बैठकर झूला झूलती हैं, पेड़ पर घोंसला बनाती हैं, पेड़ कटेंगे तो हम बेघर हो जाएंगी.” दुःखी मन से वह बोला.
“फूल भी चिल्लाने लगे थे. चिड़ियाएं तो हमारे परागकण इधर-उधर छितराकर हमें अंकुरित होने-खिलने का अवसर देती हैं, वे ही नहीं रहेंगी, तो हमारा भी कोई अस्तित्व नहीं!”
“मम्मी जी, सोचो तो पेड़ नहीं होंगे, चिड़ियाएं नहीं होंगी, फूल नहीं होंगे तो दुनिया तो बेरंग हो जाएगी न!” रिंकूं रुंआसा-सा हो गया था.
“पर यह स्वप्न तुम्हें आया कैसे!” मम्मी जी हैरान थीं.
“आज मैम ने हमें प्रकृति और रंग पाठ पढ़ाया था- और मम्मी यह स्वप्न नहीं था, सच्चाई थी. दुनिया बेरंग हो गई तो जीवन ही नीरस हो जाएगा.”
“सचमुच ये वृक्ष हमारे जीवन का और दुनिया की रंगीनियों के आधार ही तो हैं!” मम्मी ने गोद में बिठाते-प्यार से पुचकारते हुए उसे पानी पिलाया.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244