कविता

यमराज का डर

 

आज चौराहे पर यमराज से मुलाकात हो गई

औपचारिक बातचीत में

यमराज के मन की पीड़ा जुबां पर आ गई।

यमराज कहने लगा

प्रभु आपके राज, समाज की लीला विचित्र है

अपराधी, हत्यारे, माफिया के पैरोकार

अपनी अपनी सुविधा से

उसका महिमा मंडन कर रहे हैं

आम आदमी की बात करने की उन्हें फुर्सत नहीं है

जाति धर्म की आड़ में वोटबैंक मजबूत कर रहे हैं

अब तो मीडिया भी दोषी ठहरायी जा रही है

अपराधी, माफिया, हत्यारे को ही

पीड़ित बताने का खेल चल रहा है

गलत को सही, सही को ग़लत

अपने ढंग से साबित किया जा रहा है

किसी की हत्या, एनकाउंटर की चर्चा भी नहीं होती

और किसी को खूब प्रचार मिल जाता है।

ऐसे में अब मैं सोचने लगा हूं

कि क्यों न कुछ दिन के लिए

अपनी धरती यात्रा पर लगाम लगा लूं

क्योंकि अब तो मैं भी डरने लगा हूँ

कहीं ऐसा न हो कि मैं भी

यहां की राजनीति का मोहरा  बन जाऊं

किसी के निशाने पर आ जाएं

कोर्ट कचहरी और पुलिस के जाल में उलझे जाऊं

न्यायिक जांच के चक्रव्यूह में फंस जाऊं

पुलिस एन्काउन्टर या किसी अपराधी की

गोली का शिकार हो जाऊँ

गरीब कमजोर बेबस लाचार हूं

इसलिए कहीं गुमनाम न हो जाऊँ।

अभी समय है मैं निकल जाऊं

धरती पर भटकती आत्माओं को

उनके हाल पर छोड़ अपने घर बैठ जाऊं

और चुपचाप मैं भी चादर तानकर सो जाऊं।

मैंने यमराज को ढांढस बंधाया

इतना हैरान परेशान मत हो

तुम्हारा कोई क्या बिगाड़ पायेगा,

तुम्हारे साथ अन्याय होगा तो

भला आत्माओं को कौन ले जायेगा?

यदि आत्माएं यहीं की होकर रह गईं

तो क्या आत्माओं में युद्ध नहीं शुरू हो जाएगा,

मानवीय गुणों का असर उनमें नहीं आ जायेगा?

तुम्हारा तनाव और न बढ़ जाएगा

यमराज का नाम खराब नहीं हो जाएगा?

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921