कविता

मानवीय मूल्यों की तलाश

मानव व सभी जीवों के हित में सोचो !

 मानव सर्वोपरि है |

नियमों का उल्लंघन करना, 

 अपने नियम बनाकर

दूसरों के ऊपर जबरदस्ती थोंपना, 

     कहांँ का न्याय है ?

ए ! चेतना ! की अदालत है  , 

न तो अंँधी , न ही बहरी और न ही गूंँगी , 

जन ही वकील जन ही जज, 

फैसला अपना सब को सुनकर , सुनाती, 

जन में , एक नई क्रांति लाती, 

मानव की सुरक्षा सर्वोपरि  , 

कब तक खूनी खेल खेलोगे ? 

परमाणु बम हथियार बनाकर, 

माँ तड़प रही है , हाल बेहाल , झड़प रहे हैं नौनिहाल, 

तरस रहे हैं दो वक्त की रोटी के लिए लाल, 

जितना धन खर्च कर रहे हो इन पर , उतना ही करते जन पर , 

होती खुशहाली सब के मुख पर , 

समय है  जाग जाओ !

सभी जीवों का अस्तित्व है खतरे में , 

अपील है संपूर्ण संसार से, 

बचा लो! मानव जाति व सभी को, 

ना रखो!  किसी से बैर , गुज़ारिश है अखिलजन से , 

सीख लो ! , हर किसी के साथ में जी! लो! और जीने दो!

एक दूसरे के साथ ख़ुशियांँ बांँट लो!

हँस कर  एक दूजे का दु :ख बांँट लो ! 

एक दूसरे को मिलकर गले लगा लो!

फिर ना मिलेगा ! मानव! जीवन, 

सिद्धांत ऐसा बनाओ ! जो सब के हित में हो!

हर किसी का कल्याण हो ! ऐसा लक्ष्य रखो!

ऐसी नींव स्थापित करो! जो मानव की हित में हो , 

मानव व सभी जीवों के हित में सोचो !

    मानव सर्वोपरि है । 

— चेतना प्रकाश चितेरी

चेतना सिंह 'चितेरी'

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