गीत/नवगीत

किस_विध_लूँ_तेरी_थाह

जो आ जाऊँ   तो मूक  उधर 

जाने   को कह दूँ  तो बेखबर, 

कैसे   समझूँ    जज्बात  प्रिय   

किस विध लूँ  तेरी थाह  प्रिय| 

इठलाती बलखाती एक नदी 

फिर भी प्यासी जैसे कई सदी,

मिलने की दरिया से चाह नहीं 

समझो    क्या है  प्रवाह  प्रिय 

किस  विध  लूँ  तेरी थाह प्रिय| 

कहते  थे  लौट  के  आऊँगा,  

दिल  खोलकर  दिखलाऊंगा, 

पलकें   देहरी को ताक  रही 

अनिमेष  वहीं पर  झांक रही, 

अपलक   निहारूँ  राह  प्रिय  

किस  विध  लूँ  तेरी था प्रिय| 

मन की वीणा के तार हो तुम, 

कर दो झंकृत झंकार हो तुम, 

गूंजेगा  फिर वही साज प्रिय  

किस विध लूँ तेरी थाह  प्रिय|  

असीमित  अनंत अपरिभाषित 

अव्यक्त     महाकाव्य      सी, 

रच कर  फिर एक महा काव्य 

बन   जाओ   कालिदास  प्रिय, 

किस विध लूँ  तेरी   थाह  प्रिय|

— सविता सिंह मीरा 

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - meerajsr2309@gmail.com