स्वास्थ्य

”100 वर्ष जीने की कोई जादुई गोली नहीं होती, लेकिन हम नौ पाठ सीख सकते हैं“

डैन ब्यूटनर ने ब्लू जोनों, संसार के पाँच ऐसे स्थान जहाँ के लोग सबसे अधिक समय तक जीते हैं, के अध्ययन में कई वर्ष लगाये हैं। उनकी लघु फिल्म ‘दीर्घजीवन के रहस्य’ ने बहुत हलचल मचायी है। उन्होंने हिमांशी धवन से बात करते हुए बताया कि शतकजीवी हमें क्या सिखा सकते हैं।

प्रश्न- क्या आपने दीर्घजीवन के लिए किसी जादुई गोली की खोज कर ली है?
उत्तर- नहीं, मैंने जो खोजा है वह यह है कि स्वास्थ्य और प्रसन्नता की कंुजी कोई चाँदी की गोली नहीं है, बल्कि चाँदी की बातें है। ऐसा कोई फव्वारा या जादुई गोली नहीं है जिसे हम दीर्घ, स्वस्थ और प्रसन्न जीवन के लिए सेवन कर सकते हों। स्वस्थ जीवन का वातावरण बनाने के लिए कुछ छोटे-छोटे परिवर्तनों की आवश्यकता होती है। ऐसे जनसमुदाय हैं, जो ऐसा परिणाम प्राप्त कर चुके हैं और हम उनका अनुकरण कर सकते हैं।

प्रश्न- ऐसे कौन से कारक हैं जो ओकीनावा, सर्दीनिया और लोमा लिंडा लैसे स्थानों के लोगों की 100 वर्ष और उससे भी अधिक जीने में सहायता करते हैं?
उत्तर- हमें इन सभी स्थानों में समान रूप से नौ ऐसे प्रमाण-आधारित कारक मिले हैं। हम इनको पॉवर9 (नौ की शक्ति) कहते हैं।

  1. प्राकृतिक रूप से चलें– संसार के सबसे अधिक जीने वाले लोग मशीनें नहीं चलाते, मैराथन में नहीं दौड़ते या जिम में नहीं जाते। इसके स्थान पर वे ऐसे वातावरणों में रहते हैं, जो उन्हें अनजाने ही सक्रिय रहने के लिए बाध्य करते हैं। वे बागवानी करते हैं और उनके पास घर तथा आँगन के कार्य के लिए सुविधाजनक उपकरण नहीं होते।
  2. उद्देश्य– ओकिनावा के लोग इसे ‘इकीगाई’ कहते हैं और निकोया के लोग इसे ‘प्लान दा विडा’ कहते हैं। दोनों का अर्थ एक है- ‘मैं सुबह किसलिए उठता हूँ?’ अपने उद्देश्य का ज्ञान होने से आपका जीवन 7 वर्ष बढ़ जाता है।
  3. डाउन शिफ्ट– ब्लू जोनों के लोग भी तनाव का अनुभव करते हैं। लेकिन संसार के दीर्घजीवियों के पास जो होता है और हमारे पास नहीं होता, वह है तनाव को समाप्त करने की विधियाँ। ओकिनावा के लोग अपने पूर्वजों को याद करने के लिए कुछ समय निकालते हैं, एडवेंटिस्ट लोग प्रार्थना करते हैं, इकार्लन लोग झपकी ले लेते हैं और सर्दीनिया के लोग आनन्द मनाते हैं।
  4. 80 प्रतिशत का नियम– ‘हारा हाची बू’ यह कन्फ्यूशियस का 2500 पुराना मंत्र, जो वे भोजन से पूर्व बोलते हैं, उनको याद दिलाता है कि जब उनका पेट 80 प्रतिशत भर जाये, तो उनको रुक जाना चाहिए। भूख न लगने और पूरा पेट भर जाने के बीच जो 20 प्रतिशत का अन्तर है, वह वजन बढ़ाने और घटाने का अन्तर हो सकता है। ब्लू जोनों के लोग अपना सबसे छोटा भोजन दोपहर बाद या शाम प्रारम्भ होते ही करते हैं और बाद के शेष समय कुछ नहीं खाते।
  5. तिरछा पौधा लगायें– अधिकतर शतकजीवियों के भोजन का मुख्य भाग फलियों से बना होता है, जिनमें फावा, सेम, सोया और मसूर की दाल शामिल होते हैं। माँस (प्रायः सूअर का) महीने में औसतन 5 बार ही खाया जाता है। एक बार में इसका आकार एक ताश की गड्डी जितना ही होता है अर्थात् लगभग 85-115 ग्राम।
  6. शाम 5 बजे शराब– एडवेंटिस्टों को छोड़कर सभी ब्लू जोनों के लोग थोड़ी सा एलकोहल नियमित लेते हैं। कम पीने वाले लोग बिल्कुल न पीने वालों की अपेक्षा अधिक जीते हैं। तरकीब है दोस्तों के साथ प्रतिदिन 1 या दो गिलास पीना। और हाँ आप सप्ताह भर की शराब बचाकर शनिवार को 14 गिलास नहीं पी सकते।
  7. जुड़ जाओ– 263 शतकजीवियों में से 5 को छोड़कर सभी, जिनका हमने साक्षात्कार लिया, किसी आस्था-आधारित समुदाय से जुड़े हुए थै। इसकी मात्रा का अधिक महत्व नहीं है। शोध से पता चलता है कि महीने में 4 दिन आस्था-आधारित सेवाकार्य करने से जीवन की प्रत्याशा 4 से 14 वर्ष तक बढ़ जाती है।
  8. अपने प्रिय सबसे पहले– ब्लू जोनों के सफल शतकजीवी अपने परिवार को सबसे अधिक प्राथमिकता देते हैं। इसका अर्थ है- अपने वृद्ध माता-पिता और दादा-दादी को अपने साथ रखना। इससे बीमारियाँ और बच्चों की मृत्यु दर भी कम हो जाती है। वे अपने जीवनसाथी के साथ रहते हैं, जिससे उनका जीवन 3 वर्ष बढ़ जाता है और अपना समय बच्चों के साथ प्यार करते हुए बिताते हैं। इससे समय आने पर वे आपकी देखभाग करेंगे इसकी सम्भावना बहुत बढ़ जाती है।
  9. सही कबीला– संसार के सबसे अधिक जीनेवाले लोगों का जन्म ऐसे समाजों में हुआ था, जिनके व्यवहार स्वास्थ्यप्रद होते हैं। ओकीनावा के लोग 5 ऐसे मित्रों का समूह मोआइस बना लेते हैं, जो एक-दूसरे के प्रति समर्पित होते हैं। फ्रामिंघम स्टडीज के शोध से पता चलता है कि धूम्रपान, मोटापा, प्रसन्नता, और अकेलापन भी संक्रामक होते हैं। इसलिए दीर्घजीवी लोगों के नेटवर्कों ने अपने स्वास्थ्य-व्यवहार को अपने अनुकूल बना लिया है।

प्रश्न- तो हम जिम छोड़ सकते हैं, कार्बोहाइड्रेट खा सकते हैं और तब भी लम्बा जीवन जी सकते हैं, यदि हमारे पास समय बिताने के लिए अच्छे मित्र हों?
उत्तर- यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम इन चीजों को किस रूप में लेते हैं। बहुत से लोगों के लिए नियमित जिम जाना कठिन होता है और हमारा शरीर दिनभर एक मेज पर बैठकर काम करने और शाम को एक घंटा जिम जाने के लिए नहीं बना है। हमें प्रायः दिनभर प्राकृतिक रूप से चलने-फिरने की आवश्यकता होती है। कार्बोहाइड्रेट को प्रायः गलत माना जाता है, क्योंकि जैली फलियाँ और सेम की फलियाँ दोनों कार्बोहाइड्रेट हैं, लेकिन वे दोनों हमारे स्वास्थ्य के लिए समान नहीं हैं। स्वस्थ मित्रों का ऐसा समूह बनाना, जो बाहर निकलकर अच्छा समय बिताने, या वनस्पति प्रधान रात्रि-भोजन करने तथा एक दूसरे की बात सुनने और उनकी सहायता करने मे ंरुचि रखते हों, बहुत ही लाभदायक होता है।

प्रश्न- भारत में जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों जैसे डायबिटीज और हृदयाघात की दर बहुत बढ़ गयी है। हमें क्या परिवर्तन करने की आवश्यकता है?
उत्तर- कम समय के परिवर्तन वास्तव में व्यक्तिगत स्तर पर प्रारम्भ करने चाहिए। परिवार के साथ रात्रि-भोजन करें (पर टीवी देखते हुए नहीं), अपने लिए वस्तुएँ स्वयं लें और कुछ वनस्पति आधारित ऐसी वस्तुएँ चुनें, जिनको आपका परिवार पसन्द करता हो और उनको भोजन में जोड़ें। नमकीनों और मीठे पेयों से दूर रहें। अपनी भोजन की मेज पर फल और स्वास्थ्यप्रद खाद्य जैसे मूँगफली, किशमिश, काजू आदि रखें। दिनभर प्राकृतिक चलना-फिरना करते रहें और अपने परिवार को भी वैसा ही करने को कहें। दीर्घकालीन परिवर्तन सरकारों या मालिकों के ऊपर निर्भर करते हैं। उदाहरण के लिए, ऐसे चलने योग्य या बाइक चलाने योग्य शहर बसाना जहाँ कारें न हों, बल्कि पैदल चलने वाले लोग हों।

(मूल अंग्रेजी से अनुवाद- डॉ. विजय कुमार सिंघल)

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com