गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

जुड़ा  है रूह  से नाता  किनारा हो ये मुश्किल है

तुम्हारे  बिन  हमारा भी गुज़ारा हो ये मुश्किल है

बताया  है  उसे  हर  हाल  में  होना   ज़ुदा होगा

मगर ये बात भी उसको गवारा हो ये मुश्किल है

तुम्हारा  ख़ैरमक़दम है फिरआये  ज़िन्दगी में तुम

वो पहले सा मगर रिश्ता दुबारा हो ये मुश्किल है

सफ़र ये ज़िन्दगी का तो तुझे करना ही होगा तय

गुज़रता जा रहा वो फिर नज़ारा हो ये मुश्किल है

सियासत में जऱा   इन्वेस्ट कर के देखिये  साहब

तिजारत ये फ़क़त ऐसी ख़सारा हो ये मुश्किल है

ज़माना लाख कहता था मगर मैं मानता था कब

प्रखर तेरा  बुलंदी  पर  सितारा हो ये मुश्किल है

— डॉ राजेश श्रीवास्तव प्रखर

राजेश श्रीवास्तव 'प्रखर'

राजेश श्रीवास्तव प्रखर कटनी (म.प्र.)