कविता

नये साल के नये हिसाब

आओ… नए साल पर कुछ हिसाब -किताब कर ले ।

 जिंदगी ने लम्हा -लम्हा कितना घटाव दिया।

 उस सब का जोड़ कर ले ।

 जो दर्द कई गुना बढ़ते ही गए।

 आओ… चंद उम्मीदों से उन्हें भाग कर ले ।।

आओ नए साल पर कुछ हिसाब -किताब कर ले ।

जिंदगी बड़ी तेजी से निकल जाती है ।

जबकि लगता है यह गुजराती ही नहीं  है।

इसी बात पर फिर से वहीं बात कर ले।

 घूम -घाम कर,  फिर से उसी घेरे में घूमती है जिंदगी।

हम खड़े किसी त्रिकोण में जिंदगी को, 

फिर से नई उम्मीद से वर्गाकार कर ले ।

आओ नए साल पर कुछ हिसाब -किताब कर ले ।

जो लोग….कहते है।

यह करेंगे… वह करेंगे रेजोल्यूशन तो एक भुलावा  है ।

जबकि हम भी जानते हैं ।

पिछले बीते हुए  तमाम सालों में कौन -सा खंबा उखाड़ डाला है।

आओ फिर भी  …फिर से एक नई उम्मीद कर ले ।

आओ नए साल पर कुछ हिसाब -किताब कर ले ।

पिछले सालों की बजाय इस साल कुछ नया होगा।

 इसी बात पर पुराने साल को नए साल के स्वागत में विलय कर ले।

 जमा-घटाव तो चलते ही रहेंगे।

अपनी हिम्मत से हर हार को जीत में बदलने का ऐलान कर ले।

—  प्रीति शर्मा ‘असीम’

प्रीति शर्मा असीम

नालागढ़ ,हिमाचल प्रदेश Email- aditichinu80@gmail.com