कविता

पेंशन

जीवन का आधार है पेंशन,
बुढ़ापे का सहारा है पेंशन,
उम्र भर की कमाई पेंशन,
बुढ़ापे की लाठी है पेंशन।
पेंशन होती है अधिकार,
बिन पेंशन कर्मचारी लाचार,
पेंशनर को भी घर में रहना है,
हाउस रेंट अलाउंस भी है अधिकार।
हर महीने का सहारा पेंशन,
सांध्य काल का गुजारा पेंशन,
जीते जी बने उसका सहारा,
बाद में वारिसों का सहारा पेंशन।
थोड़ी-सी पेंशन बढ़ती है,
बढ़ जाती ज्यादा महंगाई,
पेंशनर की हालत वो ही समझें,
अन्य क्या समझें पीर पराई!
(18 दिसंबर ” पेंशनर दिवस” विशेष)

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244