मुक्तक/दोहा

दोहे – पावन राम चरित्र

सूर्य उत्तरायण हुए, अर्पित नमन प्रणाम।

प्राण प्रतिष्ठित अवध में, सूर्यवंश के राम।

ऋषिवत छवि थी राम की, निश्छल आर्ष चरित्र।

सदाचार – सत्कर्म से, जीवन किया पवित्र।

सुख के सागर राम थे, किया न सुख का भोग।

धर्म निभाने के लिए, सहा कुटुंब वियोग।

कभी न छोड़ा राम ने, उन्नत क्षत्रिय धर्म।

रक्षा दीनों की किया, मान अलौकिक कर्म।

मानवता का अवतरण, श्रीराम अवतार।

पावन राम चरित्र ही, जीवन का आधार ।

लोक – वेद के मध्य में, श्रीराम हैं सेतु।

मानवता का विश्व में, फहराया है केतु।

सुभग राम मंदिर बना, जहाँ विराजे राम।

रामाभा से भर गया, भव्य अयोध्या धाम।

जन्मभूमि श्रीराम की, अतिशय हुई कृतार्थ।

भव्य राम मंदिर बना, जग कल्याण हितार्थ।

देश हो गया राममय, जुड़ा धवल अध्याय।

धर्म और अध्यात्म का, अवध बना पर्याय।

रामलला मंदिर बना, चिर अभिलाषा पूर्ण।

रामद्रोहियों का हुआ, अहंकार सब चूर्ण। 

सजी अयोध्या दुल्हन – सी, जन – जन में उल्लास। 

दीपावली द्वितीय का, छाया परम हुलास।

ऋणी हुए हनुमान के, परमेश्वर श्रीराम। 

रामकाज के बाद ही, जिन्हें मिला विश्राम। 

राम न घातक आग है, राम ऊर्जा रूप। 

हल हैं जटिल विवाद के, मात्र अवध के भूप। 

लोक प्राणमय राम से, दिव्य देवमय देश। 

फिर अखण्ड भारत बने, तभी मिटें सब क्लेश। 

धर्म जहाँ पर. जय वहीं, दिव्य विश्व संदेश। 

सत्य सनातन कामना, रहे न दुख लवलेश। 

— गौरीशंकर वैश्य विनम्र

गौरीशंकर वैश्य विनम्र

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