कविता

कन्या भ्रूण हत्या

कब तक कन्या भ्रूण हत्या का पाप करते रहोगे
कब तक कन्या विहीन समाज की कोशिशें करते रहोगे
कब तक सृष्टि चक्र में अवरोधक बनोगे?
चलो मान लिया कि हमारा अस्तित्व मिटा दोगे
फिर ये तो बताओ कि सृष्टि के सृजन पथ की
अगली मंजिल भला कैसे पाओगे?
या फिर बेटे के सिर पर सेहरा कैसे सजाओगे।
वंश परंपरा को आगे बढ़ता कैसे देख पाओगे?
बेटी की चाह न रखने वालों मेरे पापा, ताऊ, चाचा, बाबा
रिश्तों की अहमियत का अहसास कैसे कर पाओगे?
बेटी, बहन, बुआ, मौसी, चाची, ताई, दादी, नानी
और बहुतेरे रिश्तों से वंचित रह भला कैसे रह पाओगे?
हम नहीं होंगे तो घर परिवार का सुख
भला कैसे उठा पाओगे?
बेटियों के बिना सृष्टि सृजनपथ के
अपराधी नहीं बन जाओगे?
नारी ही न होगी जब धरती पर
संवेदनाओं का मतलब तब कैसे जान पाओगे?
जब दर्द की वेदना असह्य हो जाएगी
तब मां, बहन, बेटी, पत्नी की
संबल भरी छांव कहां से लाओगे?
किसके आंचल में मुंह छुपाकर आंसू छुपाओगे?
बस! एक बार इतना तो बता दो
कन्या भ्रूण हत्या से कौन सा राजसिंहासन पा जाओगे?
पाप का ये बोझ उठाकर कब तक खुश रह पाओगे?
और कुछ न बता सको तो इतना ही बता दो
हत्यारा बनकर क्या सुख चैन से जी पाओगे?
बेटी के बिना कौन सा नया समाज बना पाओगे?
जिसमें रहकर मोक्ष पाने जैसा सूकून पा जाओगे।


गो

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921