कविता

कविता

मैं बहुत दूर निकल आई हूँ

मुझे रोकने की कोशिश न कर।

परवाह नहीं किसी की अब 

न है मुझे किसी और का डर।

बहुत हिम्मत लगी है मुझे

खुद के वजूद की तलाश में।

बाँध के मेरे पैरों में फिर से बेड़ियाँ  

अपाहिज बनाने  की हिमाकत न कर।

मैं कुछ अलग हूँ ये तुम्हें भी पता है

मुझसे मेरी पहचान तू जुदा न कर

मेरे मौन की भी अपनी कुछ मर्यादा है,

मुझे अमर्यादित होनें पर विवश न कर।

 मेरा सफर बहुत लम्बा है मेरे दोस्त,

 मुझे रोकने की तू कोशिश न कर।

— सपना परिहार

सपना परिहार

श्रीमती सपना परिहार नागदा (उज्जैन ) मध्य प्रदेश विधा -छंद मुक्त शिक्षा --एम् ए (हिंदी ,समाज शात्र बी एड ) 20 वर्षो से लेखन गीत ,गजल, कविता ,लेख ,कहानियाँ । कई समाचार पत्रों में रचनाओ का प्रकाशन, आकाशवाणी इंदौर से कविताओ का प्रसारण ।