ग़ज़ल
आंख से कर इशारा बुलाया गया।
इश्क में डाल डोरे फॅंसाया गया।
चांद निकला अकेला बड़ी शान से,
चांदनी को ख़फ़ा क्यों बनाया गया।
रात रोती रही थी मिलन की घड़ी,
प्यार उस से नहीं वो जताया गया।
मौत आती नहीं कौन पूछे उसे,
ज़िंदगी को सदा ही सताया गया।
नाम लिख के रखा देख दिल में मिरे,
रोग क्यों इश्क का फिर लगाया गया।
आज दूरी मिटेगी सदा के लिए,
मांग सिंदूर अपनी सजाया गया।
तोड़ दी रस्म जो थी बनाई यहाॅं,
दिल सदा के लिए था दुखाया गया।
— शिव सन्याल
