ग़ज़ल-अगर हो सके तो
इनायत तू करना अगर हो सके तो अदावत ना करना अगर हो सके तो| तेरा मेरा वादा हुआ था कभी
Read Moreइनायत तू करना अगर हो सके तो अदावत ना करना अगर हो सके तो| तेरा मेरा वादा हुआ था कभी
Read Moreकभी ख्वाबों में आती हो | कभी यादों में आती हो|| कभी बाहों में आ जाओ| मुझे यूं क्यों सताती हो || मेरा तुम गीत सुन-सुन के | उसी को गुनगुनाती हो|| थामा कर हाथ हाथों में| उसे फिर क्यों छुड़ाती हो| बड़ी प्यारी सी लगती हो | कभी जब मुस्कुराती हो|| — अरुण कुमार निषाद
Read Moreमेरी बरबादियों का जश्न मनाने वाले सुकूं न पायेगा तू मुझको सताने वाले अश्क-ए-ग़म पी कर जी लूंगा मैं हमदम
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