“भर दो, मांग मेरी”
इस बेटी की ऐसी तो किस्मत कहाँ कठपुतली है मेरी, जरुरत तुम्हारी बाबुल का घर मेरी आँगन सगाई ये मेहंदी
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Read Moreसुना, आतंक का कोई मजहब नहीं होता अर्थी और ताबूत का मातम नहीं होता जलती चिता कब्र की कतार से
Read Moreबयना ने उनकी हर कूबत बता दिया जिसने इस दर पर सेहरा सजा दिया भूल से बैठे थे उस गाँव
Read Moreअनायास हंसी आ जाती है | अतीत की बातें कभी सोचकर तो कभी सुनकर | जब हर मोड पर वयों
Read Moreसुना है टूट जातें हैं लोग अकड जाने के बाद दरक जाता है आइना इक चोट खाने के बाद बदल
Read Moreरोज-रोज ना होय रे मुरख, तेरा मन मुझसे मनुहार मेरे अंदर भी एक आदम, खुद झिझके ना करे गुहार बहुत
Read Moreकहीं टूटकर बिखर न जाए गजल डर है जख्मे हालात लिखता नहीं | अल्फाजों का बिकता देखा बाजार वजह इतनी,
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